अफगानिस्तान में तालिबान का इंटरनेट ब्लैकआउट: अनैतिकता रोकने के नाम पर देश को बाहरी दुनिया से काटा

काबुल, 30 सितंबर 2025

 

अफगानिस्तान में तालिबान शासन ने देशव्यापी इंटरनेट ब्लैकआउट लागू कर दिया है, जिससे लाखों नागरिक बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट गए हैं। तालिबान का दावा है कि यह कदम “अनैतिकता” को रोकने के लिए उठाया गया है, लेकिन सरकार की ओर से अभी तक आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। यह 2021 में सत्ता हासिल करने के बाद तालिबान का सबसे बड़ा इंटरनेट प्रतिबंध है, जो महिलाओं की शिक्षा, मीडिया स्वतंत्रता और मानवीय सहायता को गंभीर खतरे में डाल रहा है।

 

कनेक्टिविटी सामान्य स्तर के केवल 14% पर गिर गई

सोमवार को शुरू हुए इस ब्लैकआउट ने फाइबर-ऑप्टिक इंटरनेट सेवाओं को पूरी तरह ठप कर दिया, जबकि मोबाइल इंटरनेट भी लगभग निष्क्रिय हो गया है। इंटरनेट एक्सेस एडवोकेसी ग्रुप नेटब्लॉक्स के अनुसार, अफगानिस्तान की कनेक्टिविटी सामान्य स्तर के केवल 14% पर गिर गई है, जो एक “पूर्ण ब्लैकआउट” का संकेत देता है। काबुल, हेरात, मजार-ए-शरीफ और उरुजगान जैसे प्रमुख शहरों में संचार पूरी तरह ठप हो गया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय कॉल्स, बैंकिंग सेवाएं और आपातकालीन सहायता प्रभावित हो रही हैं।

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबातुल्लाह अखुंदजादा के आदेश पर यह कार्रवाई की गई। उत्तरी बाल्ख प्रांत के गवर्नर हाजी जायद ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा, “यह कदम अनैतिक गतिविधियों को रोकने के लिए उठाया गया है, और आवश्यकताओं के लिए देश के अंदर वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी।” हालांकि, “अनैतिक गतिविधियों” से उनका तात्पर्य स्पष्ट नहीं किया गया। कुछ रिपोर्ट्स में वीडियो और सोशल मीडिया कंटेंट को लक्ष्य बनाया गया है, जो पहले से ही सेंसरशिप का शिकार हैं।

यह प्रतिबंध सितंबर के मध्य से धीरे-धीरे फैल रहा था। 15 सितंबर को बाल्ख प्रांत में फाइबर-ऑप्टिक सेवाएं बंद की गईं, उसके बाद कंधार, हेलमंद, निमरुज और नंगरहर जैसे प्रांतों में विस्तार हुआ। अब यह पूरे देश पर लागू हो गया है। तालिबान ने मोबाइल सेवाओं को 2G स्तर तक सीमित करने की योजना का संकेत दिया है, लेकिन अभी तक कोई स्पष्ट समय सीमा नहीं बताई गई।

 

तालिबान का तर्क और पृष्ठभूमि

तालिबान ने इस कदम को अपनी “नैतिकता नीति” का हिस्सा बताया है, जो शरिया कानून की उनकी व्याख्या पर आधारित है। 2021 में सत्ता संभालने के बाद से तालिबान ने महिलाओं को माध्यमिक शिक्षा से वंचित किया, मीडिया पर सेंसरशिप लगाई और मानवाधिकारों की शिक्षा पर प्रतिबंध थोपा। हाल ही में, उन्होंने विश्वविद्यालयों से महिलाओं द्वारा लिखी किताबों को हटा दिया और यौन उत्पीड़न तथा मानवाधिकारों की पढ़ाई पर रोक लगा दी।यह पहली बार नहीं है जब तालिबान ने इंटरनेट को नियंत्रित करने की कोशिश की। पहले से ही वीडियो कंटेंट पर सेंसरशिप लागू है, लेकिन तालिबान का मानना है कि मौजूदा फिल्टर अपर्याप्त हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम न केवल सूचना को नियंत्रित करने का प्रयास है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए दबाव बनाने की रणनीति भी हो सकती है।

 

प्रभाव और प्रतिक्रियाएं

यह ब्लैकआउट अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। छोटे व्यवसाय ठप हो गए हैं, जबकि हाल के भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में सहायता पहुंचाना मुश्किल हो गया है। संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता फरहान हक ने कहा, “इंटरनेट कटौती ने पूर्वी अफगानिस्तान के भूकंप पीड़ितों को सहायता पहुंचाने में बाधा डाली है, जो लोगों की जान को खतरे में डाल रही है।”महिलाएं और लड़कियां सबसे अधिक प्रभावित हैं। 12 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों को स्कूलों से बाहर रखा गया है, और ऑनलाइन शिक्षा उनका एकमात्र सहारा थी। एक अफगान कार्यकर्ता ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “इंटरनेट हमारी आखिरी रोशनी थी। अब तालिबान ने हमें पूरी तरह अंधेरे में धकेल दिया।” पत्रकार संगठन कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने तालिबान से सेवाएं बहाल करने की मांग की, कहा कि यह “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर हमला” है। अफगान डायस्पोरा और कार्यकर्ता एक्स पर सक्रिय हैं। एक पोस्ट में लिखा गया, “यह ब्लैकआउट तालिबान की रणनीति है: लोगों को बुनियादी जरूरतों में उलझाकर उनके अस्तित्व को चुनौती देना।” कई ने एलन मस्क से स्टारलिंक को मानवीय सहायता के रूप में सक्रिय करने की अपील की। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने तालिबान को मान्यता नहीं दी है। बीबीसी और एपी जैसे मीडिया आउटलेट्स ने काबुल से संपर्क टूटने की पुष्टि की। अफगानिस्तान मीडिया सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन ने चेतावनी दी कि यह “मिलियनों की सूचना पहुंच और मीडिया कार्य को खतरे में डाल देगा।” विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह ब्लैकआउट लंबे समय तक चल सकता है, जो अफगानिस्तान को उत्तर कोरिया जैसी स्थिति में धकेल सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांग उठ रही है कि लक्षित प्रतिबंध लगाए जाएं और सुरक्षित संचार चैनल प्रदान किए जाएं।अफगानिस्तान, जो पहले से ही आर्थिक संकट और मानवीय आपदा से जूझ रहा है, अब डिजिटल अंधेरे में डूब गया है। यह केवल तकनीकी समस्या नहीं, बल्कि स्वतंत्रता और अधिकारों पर हमला है। दुनिया की नजरें काबुल पर टिकी हैं – क्या यह ब्लैकआउट स्थायी होगा, या दबाव में ढील मिलेगी?

 

 

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