झारखंड: कुड़मी आंदोलन के खिलाफ राजभवन मार्ग पर आदिवासियों का जोरदार धरना, एसटी दर्जे की मांग पर सख्त चेतावनी

रांची, 20 सितंबर 2025
झारखंड की राजधानी रांची में आज आदिवासी समुदाय ने कुड़मी (कुरमी-महतो) समाज को अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जा देने की मांग के खिलाफ राजभवन के समक्ष विशाल धरना प्रदर्शन किया। केंद्रीय सरना समिति और अन्य आदिवासी संगठनों के बैनर तले आयोजित इस धरने में हजारों आदिवासी युवा, महिलाएं और बुजुर्ग सड़कों पर उतर आए। प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी करते हुए कहा कि कुड़मी समाज का यह दावा आदिवासियों की अस्मिता, संस्कृति और आरक्षण पर सीधा हमला है। धरना शांतिपूर्ण रहा, लेकिन संगठनों ने आगे आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी है।
पृष्ठभूमि: एसटी दर्जे की मांग ने भड़काया विवाद
कुड़मी समाज लंबे समय से केंद्र और राज्य सरकार से अनुसूचित जनजाति का दर्जा तथा कुड़माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहा है। इसी क्रम में आज ही कुड़मी संगठनों ने झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अनिश्चितकालीन ‘रेल रोको’ आंदोलन शुरू किया है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कल इस आंदोलन को असंवैधानिक घोषित करते हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अनुमति दी, लेकिन रेल यातायात बाधित न करने का सख्त निर्देश दिया।
हालांकि, आदिवासी संगठन इस मांग का कड़ा विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि कुड़मी समाज मूल रूप से हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करता है और मुंडा, संथाल, उरांव जैसी आदिवासी जनजातियों से सांस्कृतिक रूप से अलग है। केंद्र सरकार और ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीआरआई) ने भी उनकी एसटी मांग को खारिज किया है। आदिवासी नेता इसे ‘सोची-समझी साजिश’ बता रहे हैं, जिसका उद्देश्य आदिवासियों के आरक्षण को कमजोर करना है।
धरने की झलक: ‘आदिवासी जन्म से होते हैं, बनाए नहीं जाते’
राजभवन मार्ग पर सुबह 10 बजे शुरू हुए धरने में केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने संबोधित करते हुए कहा, “कुड़मी समाज फर्जी इतिहास गढ़कर आरक्षण पर कब्जा करना चाहता है। अगर वे आदिवासी बन गए, तो हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।” उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इस मांग को मंजूरी दी, तो आदिवासी समाज जहाज रोकने तक के लिए तैयार है।प्रदर्शन में पूर्व मंत्री देवकुमार धान, पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव, सामाजिक कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग, अलविन लकड़ा, राहुल उरांव, प्रवीण कच्छप, निशा भगत, डब्लू मुंडा, राजेश लिंडा, अमर तिर्की, हर्षिता मुंडा, लक्ष्मी मुंडा, सुनिल टोप्पो, अजय खलखो, रतन उरांव और प्रकाश मुंडा जैसे प्रमुख नेता शामिल हुए। धरनार्थियों ने बैनर और पोस्टर के माध्यम से संदेश दिए: “कुड़मी एसटी नहीं, आदिवासी हक पर सेंध न लगाओ!” तथा “आदिवासी संस्कृति की रक्षा करो।”कोल्हान आदिवासी एकता मंच ने भी चाईबासा में समानांतर बैठक कर 72 घंटे की आर्थिक नाकेबंदी का ऐलान किया। मंच के संयोजक यदूनाथ तियू और कोषाध्यक्ष रामाय पूर्ती ने कहा कि कुड़मी-महतो को समर्थन देने वाले जनप्रतिनिधियों को “नेपाल जैसी सजा” दी जाएगी। पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष देवेंद्रनाथ चंपिया ने जोर देकर कहा, “कुड़मी कभी आदिवासी सूची में शामिल नहीं रहे, न ही रहेंगे।”
आगे की रणनीति: 17 अक्टूबर को जिला घेराव
आदिवासी संगठनों ने धरने के बाद राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में मांग की गई है कि कुड़मी समाज को एसटी दर्जा न दिया जाए और आदिवासी हितों की रक्षा हो। केंद्रीय सरना समिति ने 17 अक्टूबर को सभी जिलों में उपायुक्त कार्यालय घेराव तथा सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर करने का फैसला लिया। साथ ही, गांव-गांव में जागरूकता अभियान चलाने की योजना है।पिछले दिनों रांची में ‘आदिवासी अस्तित्व बचाव मोर्चा’ के तहत विशाल बाइक रैली भी निकाली गई थी, जिसमें हजारों आदिवासी शामिल हुए। संगठनों का कहना है कि संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक कुड़मी समाज की मांग पूरी तरह खारिज न हो।
सुरक्षा के कड़े इंतजाम, सामुदायिक टकराव की आशंका
झारखंड पुलिस ने रांची और अन्य संवेदनशील जिलों में भारी सुरक्षा बल तैनात किया है। रेलवे स्टेशनों पर भी सतर्कता बरती जा रही है। हालांकि, दोनों पक्षों ने शांतिपूर्ण आंदोलन का आश्वासन दिया है, लेकिन सामुदायिक टकराव की आशंका से प्रशासन सतर्क है।यह विवाद झारखंड की सामाजिक संरचना को प्रभावित कर सकता है, जहां आदिवासी आबादी राज्य की राजनीति और संसाधनों का बड़ा हिस्सा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि शांति बनी रहे।

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