रांची, 19 सितंबर 2025
झारखंड में कुड़मी समाज की लंबे समय से चली आ रही अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जा की मांग अब फिर से जोर पकड़ रही है। कल यानी 20 सितंबर से राज्यव्यापी ‘रेल टेका-डहर झेका’ (रेल रोको-रास्ता रोको) आंदोलन शुरू होने वाला है। कुड़मी समाज के संगठनों ने घोषणा की है कि वे रेल पटरियों पर उतरकर केंद्र सरकार को मजबूर करेंगे कि उनकी मांग पर तत्काल कार्रवाई हो। यह आंदोलन न केवल झारखंड बल्कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी एक साथ चलेगा, जिससे रेल यातायात और व्यापार पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है। कुड़मी समाज के मुख्य संरक्षक अजीत प्रसाद महतो ने कहा, “यह आंदोलन ऐतिहासिक होगा। हमारी मांग पर केंद्र सरकार ने अब तक कोई गंभीर कदम नहीं उठाया। एसटी दर्जा न मिलने से हम शिक्षा, रोजगार और आरक्षण जैसे अधिकारों से वंचित हैं।” समाज के अनुसार, झारखंड में उनकी आबादी लगभग 22 प्रतिशत है, जो ओबीसी श्रेणी में आती है, लेकिन सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर वे खुद को आदिवासी मानते हैं। इसके अलावा, कुड़माली भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की भी मांग की जा रही है।
आंदोलन का स्वरूप और प्रभाव
- स्थान और समय: 20 सितंबर से अनिश्चितकालीन। झारखंड में मुरी, गोमो, नीमडीह, घाघरा समेत 100 से अधिक रेलवे स्टेशनों पर रेल रोको की योजना। पश्चिम बंगाल में खेमेंडी और ओडिशा में प्रमुख स्टेशनों पर भी प्रदर्शन होंगे।
- रेलवे पर असर: दक्षिण पूर्व रेलवे ने अलर्ट जारी किया है। रांची मंडल से चलने वाली कई ट्रेनें रद्द या रूट डायवर्ट हो सकती हैं। 2023 के इसी आंदोलन में 9 ट्रेनें रद्द हुई थीं, 8 के रूट बदले गए थे। इस बार भी हावड़ा, कोलकाता और भुवनेश्वर जाने वाली प्रमुख ट्रेनें प्रभावित हो सकती हैं।
- सुरक्षा इंतजाम: पुलिस और रेलवे प्रशासन ने कड़े इंतजाम किए हैं। चक्रधरपुर मंडल में 100 से अधिक आरपीएफ जवान तैनात। खुफिया तंत्र सक्रिय है, ताकि किसी अप्रिय घटना को रोका जा सके।
आजसू पार्टी ने आंदोलन को पूरा समर्थन दिया है, जिससे सियासी माहौल गर्म हो गया है। पार्टी नेता सुदेश महतो ने कहा कि यह कुड़मी समाज का न्यायोचित संघर्ष है।
आदिवासी संगठनों का विरोध: संभावित टकराव
आंदोलन के उसी दिन आदिवासी समुदाय सड़क पर उतरेगा। आदिवासी समन्वय समिति और केंद्रीय सरना समिति ने कुड़मी समाज की मांग को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है। 19 सितंबर को रांची के करम टोली में बैठक हो चुकी है, जहां 20 सितंबर को राज्यपाल के समक्ष धरना देने का फैसला लिया गया। आदिवासी नेता गीताश्री उरांव ने कहा, “कुड़मी समाज को एसटी दर्जा मिलना वास्तविक आदिवासियों के अधिकारों पर कब्जा होगा। हम संविधान की रक्षा के लिए हर स्तर पर लड़ेंगे।”इससे राज्य में सामुदायिक तनाव बढ़ सकता है। 2023 में भी इसी मुद्दे पर 5 दिनों तक रेल रोको चला था, जो वार्ता के बाद स्थगित हुआ था। तब केंद्र सरकार ने आयोग गठित करने का वादा किया था, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठा।
पृष्ठभूमि: क्यों है यह मांग?
कुड़मी समाज का कहना है कि वे मूल रूप से आदिवासी हैं, जिनकी संस्कृति, भाषा और परंपराएं जनजातीय हैं। झारखंड, ओडिशा और बंगाल में उनकी बड़ी आबादी (कुल मिलाकर 50 लाख से अधिक) होने के बावजूद ओबीसी दर्जे के कारण वे एसटी आरक्षण से बाहर हैं। पिछले दो वर्षों में दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना, रेल रोको जैसे कई आंदोलन हो चुके हैं। प्रशासन ने सभी पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की है। यात्रियों से सलाह है कि ट्रेन स्टेटस की जांच करें। यह आंदोलन केंद्र सरकार के लिए नई चुनौती बन सकता है, खासकर आगामी चुनावों को देखते हुए।