नई दिल्ली, 01 अक्टूबर 2025
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपने 100 वर्ष पूरे कर लिए हैं। 1925 में नागपुर की एक साधारण बैठक से जन्मा यह संगठन आज न केवल भारत का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक-राष्ट्रवादी संगठन भी बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज बुधवार 1 अक्टूबर को डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित शताब्दी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया, जहां उन्होंने एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी किया। इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा, “आरएसएस का ‘राष्ट्र पहले’ का मंत्र स्वयंसेवकों की निस्वार्थ सेवा और अनुशासन की सच्ची ताकत है।”
आरएसएस की यह शताब्दी केवल एक जश्न नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण की उस यात्रा का प्रमाण है, जो डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के दृष्टिकोण से शुरू होकर आज करोड़ों स्वयंसेवकों की एकजुट शक्ति बन चुकी है। आइए, इस संगठन की स्थापना की अनकही कहानी, उसके विकास और वैश्विक प्रभाव को जानें।
स्थापना की प्रेरणादायक कहानी: एक डॉक्टर के राष्ट्र-जागरण का सपना
आरएसएस की नींव 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के पावन पर्व पर नागपुर में रखी गई। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, एक चिकित्सक और स्वतंत्रता सेनानी, ने ब्रिटिश शासन के दौर में हिंदू समाज की एकता की कमी को महसूस किया। 1890 में नागपुर में जन्मे हेडगेवार ने अपनी चिकित्सा की डिग्री के बाद कांग्रेस के आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी की। लेकिन उन्हें लगा कि राजनीतिक आंदोलनों से परे समाज को संगठित करने की जरूरत है। उस ऐतिहासिक शाम को हेडगेवार ने अपने घर पर मात्र 17 समर्पित व्यक्तियों की बैठक बुलाई। यह बैठक कोई औपचारिक सभा नहीं थी, बल्कि एक अनौपचारिक चर्चा थी, जहां हिंदू समाज को मजबूत बनाने के लिए ‘शाखा’ की अवधारणा पर विचार हुआ। प्रारंभिक नामों में ‘जारीपाटका मंडल’ और ‘भारतोद्धारक मंडल’ जैसे सुझाव आए, लेकिन मतदान के बाद ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ नाम पर मुहर लगी। 17 अप्रैल 1926 को औपचारिक रूप से संगठन का नाम तय हुआ। पहली शाखा इटवार दरवाजा स्कूल के सामने के मैदान में लगी, जहां मात्र 5 सदस्य थे। हेडगवार का मानना था कि राष्ट्र-निर्माण व्यक्तिगत चरित्र-निर्माण से शुरू होता है। शाखाओं में शारीरिक व्यायाम, बौद्धिक चर्चाएं और हिंदू एकता के संस्कार शामिल थे। 1930 तक संगठन ने 100 स्वयंसेवकों को जोड़ा, और 1939 में हेडगेवार के निधन तक यह महाराष्ट्र से बाहर फैल चुका था। उनके उत्तराधिकारी एम.एस. गोलवलकर (गुरुजी) ने इसे वैचारिक मजबूती दी।
दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक संगठन: आंकड़ों की सच्चाई
आरएसएस को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक-राष्ट्रवादी संगठन कहा जाना गलत नहीं है। विकिपीडिया के अनुसार, यह 21वीं सदी में सदस्यता के आधार पर दुनिया का सबसे बड़ा दक्षिणपंथी संगठन है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, आरएसएस के पास 83,000 से अधिक शाखाएं हैं, जो 45,600 से ज्यादा स्थानों पर सक्रिय हैं। सदस्यता के दावे 5 मिलियन से लेकर 20 करोड़ तक हैं, लेकिन स्वतंत्र अनुमानों में यह 5-6 करोड़ स्वयंसेवकों का विशाल नेटवर्क है।
यह संगठन केवल हिंदू राष्ट्रवाद तक सीमित नहीं; यह ‘संगठन परिवार’ का नेतृत्व करता है, जिसमें 80 से अधिक सहयोगी संस्थाएं शामिल हैं – जैसे विश्व हिंदू परिषद (VHP), भारतीय जनता पार्टी (BJP), अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और भारतीय मजदूर संघ (BMS)। ये शिक्षा, श्रम, राजनीति और धर्म के हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। आरएसएस की वैश्विक पहुंच 39 देशों तक फैली है, जहां हिंदू डायस्पोरा को जोड़ने का काम होता है।
आरएसएस का उद्देश्य ‘सर्वांगीन उन्नति’ है – समाज के हर वर्ग का समग्र विकास। यह हिंदुत्व को बढ़ावा देता है, जो हिंदू संस्कृति, धर्म और जीवनशैली को एकजुट करता है। संगठन की संरचना पदानुक्रमित है: सरसंघचालक (वर्तमान में डॉ. मोहन भागवत), सह-संघचालक, प्रचारक (पूर्णकालिक कार्यकर्ता) और स्वयंसेवक। प्रचारक, जैसे पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी, संगठन की रीढ़ हैं।
विवादों और प्रतिबंधों से उबरते हुए: सेवा का सफर
आरएसएस का इतिहास चुनौतियों से भरा है। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद पहली बार प्रतिबंधित हुआ, जब नाथूराम गोडसे (पूर्व स्वयंसेवक) को आरोपी ठहराया गया। हालांकि, जांच में संगठन को निर्दोष पाया गया, लेकिन कलंक लगा। 1975 के आपातकाल और 1992 के बाबरी विध्वंस के बाद दोबारा प्रतिबंध। कुल तीन बार प्रतिबंध झेलने के बावजूद, आरएसएस ने कभी हिंसा को बढ़ावा नहीं दिया; बल्कि सेवा को अपना हथियार बनाया। आजादी की लड़ाई से लेकर आपदाओं तक, स्वयंसेवक हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहे। 2013 की उत्तराखंड बाढ़, 2020 के कोविड लॉकडाउन में मास्क, साबुन और भोजन वितरण – आरएसएस ने लाखों लोगों की मदद की। गुरु पूर्णिमा पर भगवा ध्वज को गुरु दक्षिणा की परंपरा आज भी जारी है, जो सामाजिक कार्यों के लिए धन जुटाती है।
शताब्दी वर्ष: 2 अक्टूबर को देशभर में सभाएँ और रैलियां
शताब्दी वर्ष की शुरुआत 26 अगस्त 2025 से हुई, जब सरसंघचालक मोहन भागवत ने दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और कोलकाता में व्याख्यानमाला दी। संगठन का लक्ष्य हर ब्लॉक तक पहुंचना है। विजयादशमी (2 अक्टूबर) पर देशभर में रैलियां और सार्वजनिक सभाएं होंगी। नवंबर-दिसंबर में तीन सप्ताह का द्वार-द्वार अभियान चलेगा, जहां स्वयंसेवक घर-घर जाकर संगठन के योगदान को साझा करेंगे। युवा सम्मेलन, हिंदू एकता सम्मेलन और ‘पंच परिवर्तन’ (सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण संरक्षण, मातृभाषा, पारंपरिक वेशभूषा और नागरिक कर्तव्य) पर जोर दिया जा रहा है। पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में कहा, “आरएसएस की यात्रा बेजोड़ और प्रेरणादायक है।” दिल्ली सरकार ने भी स्कूल पाठ्यक्रम में आरएसएस के इतिहास को शामिल करने का फैसला लिया है। राष्ट्र के प्रहरी की अनंत यात्रा 100 वर्षों में आरएसएस ने साबित किया कि एक छोटा विचार, समर्पित स्वयंसेवकों की ताकत से विशाल रूप धारण कर सकता है। दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक संगठन के रूप में, यह हिंदू एकता का प्रतीक है, जो भारत को वैश्विक महाशक्ति बनाने का सपना देखता है। जैसे डॉ. हेडगेवार ने कहा था, “संगठन राष्ट्र को शिखर तक ले जाएगा।” शताब्दी के इस क्षण पर, आरएसएस न केवल अतीत का जश्न मना रहा है, बल्कि भविष्य की नई ऊंचाइयों को छूने की प्रतिबद्धता जता रहा है।