‘एक सभ्य समाज की पहचान ये है कि…’ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के 10 दमदार विचार

बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर देश के संविधान के निर्माता तो थे ही, वह अपनी दूर दृष्टि, लोगों को समझने के नजरिये, जाति प्रथा के विरुद्ध तेवर के लिए समाज और देश में विशेष रूप से सम्मानित हैं। अपनी विशिष्ट योग्यताओं के कारण ही उन्हें भारतीय संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया था। और नतीजा भारत के सामने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संविधान के रूप में सामने है। डॉ. भीमराव आम्बेडकर का जीवन दर्शन आज भी प्रासंगिक है क्योंकि इसने भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था को आकार देने में मदद की।
डॉ. आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ के एक गरीब परिवार में हुआ था। वह भीमराव रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14वीं सन्तान थे। उनके बचपन का नाम रामजी सकपाल था। वे हिंदू महार जाति के थे। उनकी जाति के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था। एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण उनका बचपन कष्टों में बीता। जिन सामाजिक भेदभावों में उनका बचपन बीता, वह बाद में उनके विचारों में भी परिलक्षित तो होता ही है, यही वजह भी है कि उन्होंने एक समाज की कल्पना की जिसमें कोई भेदभाव न हो।

डॉ. भीमराव आम्बेडकर पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने सामाजिक न्याय और सामाजिक समरसता के लिए आवाज उठाई। भारतीय समाज के छुआछूत के रोग की जड़ को पहचानकर उसकी दवाई देने वाले एक डॉक्टर के रूप में जीवन भर काम किया। जिस रोग ने पूरे देश को मानसिक रोगी बना रखा था। डॉ. आम्बेडकर पहले देश के पहले नायक थे, जिन्हें अपने लोगों के बीच स्थापित होने में किसी प्रकार की प्रचार की आवश्यकता नहीं पड़ी। उनको लोगों ने खुद चुना, वे दार्शनिक की तरह अपने विचार रखते गए और उनके अनुयायी अनुसरण करते हुए उनके पीछे चल दिए। उनके विचारों से लोगों के जीवन में बदलाव आया और उन्होंने समाज को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

उन्होंने लक्ष्य रखा था कि हिन्दू समाज में फैली अस्पृश्यता जैसी कुरीतियों को समाप्त कर नए मानवीय समाज की स्थापना की जाए। इसके माध्यम से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के दर्द को अच्छी तरीके से समझ पाएगा। जाति व्यवस्था केवल पृथक-पृथक असमान समूहों का ही संगठन नहीं है, अपितु इसका सबसे दूषित तथा कलंकित रूप अस्पृश्यता के रूप में स्पष्ट दिखाई देता है। इसका विश्व में कहीं कोई सादृश्य नहीं मिलता। इन समुदायों की इस अपवित्रता का कोई उपचार नहीं है और यह स्थाई है।

डॉ. आम्बेडकर जीवन भर गौतम बुद्ध, संत कबीर और ज्योतिबा फुले के जीवन से प्रभावित रहे। उनके बताए गए सिद्धांतों का पालना किया। गौतम बुद्ध के चिंतन से उन्हें वेदों और स्मृतियों में प्रतिपादित वर्ण व्यवस्था और सामाजिक असमानता के विरुद्ध विद्रोह का दर्शन प्राप्त हुआ। कबीर का प्रभाव उन पर यह पड़ा कि उन्होंने सार्वजनिक जीवन में व्यक्ति पूजा, धार्मिक अन्ध-विश्वासों और कर्मकांडों का घोर विरोध किया और सामाजिक समानता के पक्षधर बने। प्रसिद्ध समाज सुधारक ज्योतिबा फुले से प्रभावित होकर उन्होंने मनुस्मृति की कठोर आलोचना की, स्त्रियों और शूद्रों की अनिवार्य शिक्षा पर बल दिया। सवर्णों की ओर से किए जा रहे अन्याय के प्रति हिन्दुओं के दलित वर्ग को जागरुक बनाया और सामाजिक समानता और सामाजिक न्याय पर विशेष बल दिया।

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