तिनसुकिया, 9 अक्टूबर 2025
असम के तिनसुकिया जिले में मंगलवार को चाय बागान मजदूरों और आदिवासी समुदायों ने हजारों की संख्या में सड़कों पर उतरकर अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जा, भूमि अधिकार और दैनिक मजदूरी में वृद्धि की मांग को लेकर भव्य प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के दौरे के ठीक पहले हुआ, जिसने इसे राजनीतिक रंग दे दिया। प्रदर्शनकारियों ने ‘नो ST, नो रेस्ट’ और ‘हम चाहते हैं भूमि अधिकार’ जैसे नारे लगाए, जबकि सड़कें अवरुद्ध हो गईं। यह आंदोलन 2014 में भाजपा द्वारा किए गए वादे की याद दिलाता है, जब पार्टी ने वचन दिया था कि सत्ता में आने पर असम की छह जनजातियों को ST दर्जा मिलेगा। लेकिन 10 साल बाद भी यह वादा अधूरा है।
हजारों की भीड़, शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़
तिनसुकिया शहर के हुकन पुखुरी खेल मैदान से शुरू हुए इस रैली में असम चाय मजदूर संघ (ACMS), असम चाय जनजाति छात्र संगठन (ATTSA), आदिवासी छात्र संघ (AASAA), महिलाओं के समूह और अन्य संगठनों ने भाग लिया। अनुमान के मुताबिक, एक लाख से अधिक चाय समुदाय के सदस्यों ने इसमें हिस्सा लिया, जो असम की चाय उद्योग की रीढ़ हैं।
प्रदर्शनकारी बैनर और प्लेकार्ड लेकर थाना चैराली तक मार्च निकाला, जहां उन्होंने सरकार की ‘उपेक्षा’ की निंदा की। एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “हम चाय बागानों में कठिन श्रम करते हैं, लेकिन हमें न भूमि का पट्टा मिला, न शिक्षा-स्वास्थ्य की सुविधा। ST दर्जा हमारी पहचान और सम्मान का सवाल है।” संगठनों ने चेतावनी दी कि यदि मांगें पूरी नहीं हुईं, तो आंदोलन पूरे असम में फैल जाएगा।
मुख्यमंत्री सरमा ने MMUA (मुख्यमंत्री महिला उद्यमिता अभियान) के तहत महिलाओं को वित्तीय सहायता वितरित करने के दौरान इस प्रदर्शन का सामना किया। हालांकि, उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा कि भाजपा ST दर्जा की मांग का समर्थन करती है, लेकिन केंद्र सरकार की मंजूरी जरूरी है।
2014 का वादा: छह जनजातियों को ‘जुमला’ या वास्तविक प्रतिबद्धता?
भाजपा ने 2014 लोकसभा चुनावों से पहले असम में अपनी विजन डॉक्यूमेंट में स्पष्ट वादा किया था कि सत्ता में आने पर मोरान, मटक, ताई अहोम, चुतिया, कोच-राजबोंगशी और चाय आदिवासियों (टी ट्राइब्स) सहित छह समुदायों को ST दर्जा दिलाने के लिए केंद्र के साथ मिलकर काम करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोंगाईगांव रैली में इसकी पुष्टि की और कहा कि कांग्रेस सरकार ने इसे नजरअंदाज किया।
2016 विधानसभा चुनावों में भी यह वादा दोहराया गया, जिसके बाद इन समुदायों ने भाजपा को भारी समर्थन दिया। लोकनीति सर्वे के अनुसार, इन छह समुदायों के 49% मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया। लेकिन 2016 में गठित एक समिति के बावजूद, प्रक्रिया रुकी हुई है। 2021 चुनावों में भाजपा ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली।
विपक्षी नेता गौरव गोगोई ने हाल ही में पीएम मोदी को याद दिलाया कि 2014 में छह महीने में ST दर्जा देने का वादा किया गया था, लेकिन 10 साल बाद भी कुछ नहीं हुआ। प्रदर्शनकारी इसे ‘राजनीतिक धोखा’ बता रहे हैं। एक ATTSA नेता ने कहा, “भाजपा ने हमें वोट बैंक बनाया, लेकिन अब हमारी मांगें अनसुनी हैं।”
चाय आदिवासियों की पृष्ठभूमि: ब्रिटिश काल की विरासत
असम के चाय आदिवासी मूल रूप से झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल से 19वीं सदी में ब्रिटिशों द्वारा लाए गए थे। आज वे असम की आबादी का एक तिहाई हिस्सा हैं और चाय उद्योग पर निर्भर हैं, जो राज्य की अर्थव्यवस्था का 20% योगदान देता है। लेकिन वे OBC श्रेणी में हैं, जिससे उन्हें सीमित आरक्षण मिलता है। ST दर्जा मिलने पर शिक्षा, नौकरी और भूमि अधिकारों में लाभ होगा।
वर्तमान में चाय मजदूरों की दैनिक मजदूरी 250 रुपये है, जबकि वे 551 रुपये की मांग कर रहे हैं। भूमि पट्टा न मिलने से वे असुरक्षित हैं। हाल के वर्षों में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने भी असम सरकार से ST दर्जा की मांग की है।
अन्य समुदायों का समर्थन और विरोध
यह मांग छह समुदायों की साझा है, जिनकी कुल आबादी असम की 40% हो सकती है। हाल ही में मोरान समुदाय ने भी तिनसुकिया में 20,000 लोगों के साथ प्रदर्शन किया। लेकिन मौजूदा ST समुदाय जैसे मिसिंग, बोरो और राभा इसका विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इससे उनके आरक्षण पर असर पड़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मणिपुर जैसी स्थिति पैदा कर सकता है।
असम सरकार ने दिसंबर 2024 में एक मंत्री समूह गठित किया, लेकिन प्रगति धीमी है। केंद्र ने लोकसभा में कहा कि प्रस्ताव प्राप्त हो चुका है, लेकिन अंतिम निर्णय लंबित है।
प्रदर्शन के बाद संगठनों ने कहा कि यह ‘सम्मान, पहचान और न्याय की लड़ाई’ है। यदि सरकार ने जल्द कार्रवाई नहीं की, तो आर्थिक नाकाबंदी और राज्यव्यापी हड़ताल की धमकी दी गई है। 2026 चुनावों से पहले यह मुद्दा भाजपा के लिए चुनौती बन सकता है। असम के चाय बागानों से निकलने वाली चाय दुनिया भर में प्रसिद्ध है, लेकिन इसके पीछे मजदूरों की पीड़ा अनदेखी नहीं की जा सकती। ST दर्जा न केवल आर्थिक लाभ देगा, बल्कि इन समुदायों की सांस्कृतिक विरासत को भी संरक्षित करेगा।