नई दिल्ली/रांची, 8 अक्टूबर 2025
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को बुधवार को बड़ी राहत प्रदान की है। अदालत ने सारंडा वन क्षेत्र के 31,468 हेक्टेयर क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य (वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी) घोषित करने की अनुमति दे दी है। यह फैसला लंबे समय से चले आ रहे विवाद को समाप्त करने वाला है, जिसमें खनन गतिविधियों और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने की चुनौती प्रमुख थी।
क्या है मामला?
झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले में स्थित सारंडा वन एशिया का सबसे बड़ा साल (सागवान) वन क्षेत्र है, जो अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहां हाथी, तेंदुआ, हिरण और सैकड़ों पक्षी प्रजातियां निवास करती हैं। 2022 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इस क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने का निर्देश दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने खनन हितों का हवाला देकर इसमें देरी की।
इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अप्रैल 2025 में कोर्ट ने राज्य को 57,519 हेक्टेयर क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने का निर्देश दिया था, साथ ही ससांगदाबुरु क्षेत्र के 13,603 हेक्टेयर को संरक्षण रिजर्व बनाने को कहा। लेकिन सरकार ने सीमाओं पर पुनर्विचार के नाम पर देरी की, जिससे सितंबर 2025 में कोर्ट ने कड़ी चेतावनी जारी की।
कोर्ट का फैसला और राहत
आज बुधवार को मामले की सुनवाई में झारखंड सरकार ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) की सिफारिशों का हवाला दिया गया। कोर्ट ने मूल प्रस्तावित 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने की मंजूरी दे दी, जो पहले से कम है लेकिन पर्यावरणविदों के लिए महत्वपूर्ण कदम है। बेंच ने कहा कि राज्य वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 26ए के तहत राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की सहमति से सीमाओं में बदलाव कर सकता है।
मुख्य सचिव अविनाश कुमार ने कोर्ट में पेश होकर आश्वासन दिया कि अधिसूचना जल्द जारी की जाएगी। कोर्ट ने सरकार को दो सप्ताह के भीतर अधिसूचना जारी करने और स्थानीय समुदायों से परामर्श करने का निर्देश दिया। अवमानना की कार्रवाई टाल दी गई, जिससे राज्य सरकार को राहत मिली।
प्रभाव और प्रतिक्रियाएं
यह फैसला सारंडा के पारिस्थितिक संतुलन को मजबूत करेगा। क्षेत्र में अवैध खनन और वनों की कटाई रोकने में मदद मिलेगी। पर्यावरण कार्यकर्ता व विधायक सरयू राय ने ट्वीट किया, “सारंडा का संरक्षण अब सुनिश्चित। यह एशिया के फेफड़ों की रक्षा का ऐतिहमक कदम है।” विधायक ने 2012 से इस मुद्दे पर जनहित याचिका दायर की थी।
हालांकि, खनन विभाग चिंतित है। अधिकारियों के अनुसार, अभयारण्य घोषणा से इको-सेंसिटिव जोन में खनन प्रतिबंधित हो जाएगा, जिससे लौह अयस्क और मैंगनीज के पट्टे प्रभावित होंगे। पूर्व में 4,800 हेक्टेयर क्षेत्र में खनन लीज दिए गए थे, और 2006 के बाद 65,700 हेक्टेयर के आवेदन लंबित हैं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, “हम पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाएंगे। स्थानीय आदिवासी समुदायों के हितों का ध्यान रखा जाएगा।” राज्य कैबिनेट ने हाल ही में मंत्रियों के समूह (जीओएम) का गठन किया था, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर अंतिम निर्णय लिया गया।
अभयारण्य घोषणा से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह क्षेत्र हाथी कॉरिडोर के रूप में भी महत्वपूर्ण है। एम.बी. शाह आयोग (2010) ने यहां अवैध खनन पर चिंता जताई थी। अब सरकार को सतत खनन योजना तैयार करनी होगी। यह फैसला वन्यजीव संरक्षण में एक मील का पत्थर साबित होगा।