पाठ्य पुस्तकों में पढ़ेंगे शिबू सोरेन की जीवनी: झारखंड के शिक्षा विभाग के प्रस्ताव को मिली मंजूरी

रांची, 23 सितंबर 2025
झारखंड सरकार ने ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन की जीवनी को राज्य के सरकारी स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों में शामिल करने के प्रस्ताव को औपचारिक मंजूरी दे दी है। यह फैसला अगले शैक्षणिक सत्र 2026 से प्रभावी होगा, जिसमें कक्षा 1 से 12 तक की आठ पाठ्य पुस्तकों में उनके जीवन, संघर्ष और योगदान पर आधारित अध्याय जोड़े जाएंगे। राज्य के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने इसकी घोषणा की, जो शिबू सोरेन के निधन के बाद उनके विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
प्रस्ताव का दायरा: कक्षा-वार अध्याय
यह पहल राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में लागू होगी, जहां शिबू सोरेन की जीवनी को उम्र के अनुसार अनुकूलित सामग्री के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT) के उप निदेशक पीके चौबे ने बताया कि कुल आठ पाठ्य पुस्तकों में अध्याय जोड़े जाएंगे। प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:

  • कक्षा 1-2: चित्रकथा (कॉमिक बुक स्टाइल) के माध्यम से शिबू सोरेन का प्रारंभिक जीवन और योगदान।
  • कक्षा 4: कविताओं और कहानियों के जरिए प्रकृति संरक्षण के उनके प्रयास।
  • कक्षा 8: मानवीय मूल्य, नेतृत्व और आंदोलनों में उनकी भूमिका।
  • कक्षा 9: भाषा विषयों (हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू) में उनकी जीवनी पर अध्याय।
  • कक्षा 11: उनके 19-सूत्री कार्यक्रम पर विस्तृत चर्चा।
  • अन्य कक्षाएं: पर्यावरण अध्ययन, सामाजिक विज्ञान और अन्य विषयों में एकीकृत सामग्री।

विभाग के सचिव उमाशंकर सिंह ने कहा, “दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने झारखंड की पहचान को नई ऊंचाइयां दीं। उनके संघर्ष, मूल्य और जन अधिकारों के प्रति समर्पण नई पीढ़ी को प्रेरित करेंगे।” अध्यायों का ड्राफ्ट 31 अगस्त 2025 तक अंतिम रूप ले चुका है और इसे NCERT की मंजूरी के बाद नई पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाएगा।

पृष्ठभूमि: शिबू सोरेन की विरासत
शिबू सोरेन (11 जनवरी 1944 – 4 अगस्त 2025), जिन्हें ‘दिशोम गुरु’ (आदिवासी गुरु) के नाम से जाना जाता है, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री थे। उन्होंने 18 वर्ष की उम्र में संथाल नवयुवक संघ की स्थापना की और 1972 में JMM का गठन किया। आदिवासी भूमि अधिकारों, अलग झारखंड राज्य की मांग और सामाजिक न्याय के लिए उनके संघर्ष ने राज्य की नींव रखी। वे तीन बार मुख्यमंत्री (2005, 2008-09, 2009-10), सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे।उनके निधन के बाद कांग्रेस, JMM और निजी स्कूलों की एसोसिएशन (PASWA) ने उनकी जीवनी को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की थी। PASWA के राष्ट्रीय अध्यक्ष अलोक कुमार दुबे ने इसे “मूल्य-आधारित शिक्षा” का हिस्सा बताया, जो छात्रों को सामाजिक न्याय और नेतृत्व की प्रेरणा देगा। JMM प्रवक्ता तनुज खत्री ने इसे “ऐतिहासिक” करार दिया, जो झारखंड आंदोलन के नेतृत्व को मान्यता देता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और प्रभाव
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने इस निर्णय का स्वागत किया है। पार्टी नेता मिथिलेश ठाकुर ने सोशल मीडिया पर कहा, “यह न केवल एक अध्याय है, बल्कि नैतिक दिशा-निर्देश है जो भविष्य की पीढ़ियों को मार्गदर्शन देगा।” राज्य कांग्रेस अध्यक्ष केशव महतो कमलेश ने भी पहले ही मांग उठाई थी कि शिबू सोरेन के नाम पर विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए और उनके निवास को संग्रहालय बनाया जाए। यह कदम न केवल शिबू सोरेन की विरासत को अमर करेगा, बल्कि छात्रों को स्थानीय नायकों के माध्यम से इतिहास से जोड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे आदिवासी इतिहास और संघर्ष की समझ बढ़ेगी, जो राष्ट्रीय नेताओं के साथ संतुलन बनाएगा।

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