रांची/ दुमका 02 अगस्त।
झारखंड अलग राज्य आंदोलन के अग्रदूत, गरीबों के मसीहा, झारखंड मुक्ति मोर्चा झामुमो के संस्थापक, पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का आज निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे। दिल्ली के गंगा राम अस्पताल में करीब एक महीने से अधिक समय तक चली इलाज के दौरान आज उन्होंने अंतिम सांस ली। पिछले 24 जून को उन्हें गंगा राम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां उनके पुत्र मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, बसंत सोरेन और परिवार के लोग लगातार उनकी देखभाल व सेवा में जुटे रहे। इस बीच शिबू सोरेन की कर्मभूमि संताल परगना सहित समूचे झारखंड में राजनीतिक व सामाजिक नेता और कार्यकर्ता उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की और राज्य के विभिन्न मंदिर, मस्जिद और गिरजाघरों में पूजा अनुष्ठान कर उनके शीघ्र स्वस्थ होने की दुआएं की। लेकिन गंगाराम अस्पताल में चली लम्बी इलाज के दौरान आज झारखंड का गांधी कहलाने वाले आम लोगों में दिशोम गुरु के नाम से लोकप्रिय शिबू सोरेन ने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया। इससे दुमका सहित पूरे राज्य में शोक की लहर दौड़ गयी है।
शिबू सोरेन से दिशाेमगुरु तक का सफर
खासकर संताल परगना झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन की कर्मभूमि रही है। 70 के दशक से उनका संताल परगना से गहरा रिश्ता रहा है। झारखंड अलग राज्य आंदोलन में लम्बे अर्से तक गुरुजी के साथ जुड़े लोग कहते हैं कि शिबू सोरेन सिर्फ नेता नहीं बल्कि सदियों से शोषित,वंचित, दबे कुचले गरीबों के आत्मा की आवाज हैं। जिन्होंने हमेशा शोषितों और वंचितों की आवाज़ को बुलंदी दी है। पूर्ववर्ती केंद्र व राज्य सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ वे जीवन भर संघर्षरत रहे हैं। सरकार व प्रशासन की प्रताड़ना के बावजूद गुरु जी के नेतृत्व में करीब चार दशक तक चले लम्बे संघर्ष के बाद झारखंड को अलग राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। अलग राज्य के लिए जीवन भर संघर्ष करने के वावजूद अलग राज्य बनने के बाद भी शिबू सोरेन को कभी भी अपने सपनों के अनुरुप राज्य को सजाने संवारने का का अवसर नहीं मिल सका। हालांकि 15 नवम्बर 2000 ई में झारखंड अलग राज्य निर्माण के बाद भले ही उन्हें केन्द्र में तीन बार कोयला एवं खान मंत्री और तीन बार मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला, लेकिन विभिन्न कारणों से वे कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके । झारखंड के रामगढ़ जिले के नेमरा नाम के एक छोटे से गांव निवासी पिता सोबरन सोरेन और माता सोना के घर 11 जनवरी 1944 में जन्म हुआ । पिता शिक्षक थे लेकिन किसानी से भी गहरा लगाव था। वे चाहते थे उनके बच्चे भी अच्छी शिक्षा प्राप्त करे। लेकिन गोला में पढ़ने वाले अपने दोनों बेटे राजा राम सोरेन और बचपन का पुकार नाम शिव चरण जो बाद में शिबू सोरेन के नाम से समूचे देश में लोकप्रिय हुए को खाने पीने का सामना इत्यादि पहुंचाने जा रहे थे। इसी क्रम में अहले सुबह नेमरा से गोला के बीच सुनसान जंगली रास्ते में उनकी हत्या कर दी गई। पिता की हत्या के बाद दिशोम गुरु शिबू सोरेन पढ़ाई लिखाई छोड़कर बचपन से गरीबों पर अत्याचार, अन्याय, नशाबंदी व महाजनी प्रथा के खिलाफ संघर्ष की राह पर निकल पड़े। करीब 81 साल के प्रारम्भिक सफर में बचपन में पिता की हत्या के बाद मजदूरी की । फिर नदी,जंगल पहाड़ों का भ्रमण करने लगे। सदियों से शोषित, पीड़ित आदिवासी समाज को जागरूक करने लगे।
जीवन के अहम मोड़
अपने जीवन के सामाजिक और राजनीतिक सफर में कभी पारिवारिक उलझन तो, कभी राजनीतिक विवादों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। बचपन में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया। तो कभी उफान पर रहे झारखंड आंदोलन के दौरान ही कई साथियों ने भी उनका साथ छोड़ दिया। 2009 में बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन के असामयिक निधन की पीड़ा ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। फिर भी उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे बढ़ते रहे। इस तरह कहां जाय तो उन्हें कभी भी सुख चैन नसीब नहीं हुआ । दिशोम गुरू शिबू सोरेन को अपना आदर्श मानने वाले उनके हजारों समर्थक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें कार्य करने का पर्याप्त अवसर नहीं मिलने की वजह से आज भी मायूस हैं। उनका मानना है कि झारखंड राज्य निर्माण के 25 वर्ष बीत गये। फिर भी उनके सपनों के अनुरुप झारखंड का नव निर्माण सम्भव नहीं हो पाया है। हालांकि हाल के कुछ वर्षों से उनके द्वितीय पुत्र हेमंत सोरेन उनके आदर्श और सपनों को धरातल पर उतारने का जी-तोड़ प्रयास जरुर कर रहे हैं। जानकारों के अनुसार झामुमो के संस्थापक और वर्तमान में राज्यसभा के सांसद शिबू सोरेन 1980 से 2019 तक दुमका से सांसद व विधायक चुने जाते रहे हैं । इस अवधि में वे दुमका लोकसभा क्षेत्र से आठ बार सांसद और जामा व जामताड़ा से एक एक बार विधायक चुने गए । वहीं दो बार राज्यसभा के सांसद भी रहे। जबकि अलग झारखंड राज्य निर्माण के बाद 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें तीन बार केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेकिन वे कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने पड़ा। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में पहली बार उन्हें 22 मई 2004 में केंद्रीय कोयला मंत्री बनाया गया । लेकिन तीस साल पुराने जामताड़ा के एक मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी किये जाने की वजह 24 जुलाई 2004 को उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि इस मामले में करीब एक महीने तक जेल में बंद रहने के बाद वे जमानत पर रिहा हुए। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार में दूसरी बार 27 नवम्बर 2004 को उन्हें पुनः केन्द्रीय कोयला एवं खान मंत्रालय की जिम्मेवारी दी गई। लेकिन 2 मार्च 2005 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद 2 मार्च 2005 को वे पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। लेकिन विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण 12 मार्च 2005 को महज 10 दिन के भीतर ही उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना पड़ा। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में पुनः 29 जनवरी 2006 में शिबू सोरेन ने तीसरी बार केंद्रीय कोयला मंत्री के रूप में शपथ ली। इस बार भी दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। इस बीच दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने उनके निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के कथित आरोप से संबंधित एक मामले में उन्हें दोषी करार दे दिया। इस वजह से 29 नवंबर 2006 को उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन 2007 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस हत्या कांड मामले में उन्हें बरी कर दिया। इसके करीब एक साल के बाद निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा सरकार के गिर जाने की वजह से 28 अगस्त 2008 को शिबू सोरेन कांग्रेस,राजद व अन्य गैर भाजपा समर्थित विधायकों के समर्थन से दूसरी बार सांसद रहते राज्य के मुख्यमंत्री बने। छह महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य बनने की अनिवार्यता के मद्देनजर तमाड़ विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में यूपीए ने उन्हें साझा उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरा। लेकिन इस उपचुनाव में उन्हें गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर से पराजित हो जाना पड़ा। इस वजह से महज 114 दिन के भीतर ही 18 जनवरी 2009 को उन्हें मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे देना पड़ा। इसी साल 2009 में सम्पन्न द्वितीय झारखंड विधानसभा के चुनाव में राज्य में किसी भी दल को बहुमत नहीं प्राप्त हो सका। इस वजह से दुमका से सांसद रहते हुए वे भाजपा के समर्थन से 30 दिसम्बर 2009 में तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री चुने गये। लेकिन इस बार भी विवादों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार द्वारा लोकसभा में पेश एक प्रस्ताव का उन्होंने समर्थन कर दिया । इस कारण भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया। इस वजह से उनकी सरकार गिर गयी और महज 153 दिन के भीतर 31 मई 2010 को तीसरी बार उन्हें मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे देना पड़ा। इस तरह उनका सम्पूर्ण जीवन बेहद उतार चढ़ाव भारा रहा। फिर भी वे कभी विचलित नहीं हुए। पिछले एक दशक से दिशोम गुरू शिबू सोरेन बीमार रहने के बावजूद पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाते रहे।