जयपुर, 22 दिसंबर 2025
राजस्थान में अरावली पर्वतमाला की रक्षा के लिए चल रहा आंदोलन सोमवार को उग्र हो गया। केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दी गई अरावली की नई परिभाषा – कि केवल 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली भूमि को ही अरावली माना जाए – के खिलाफ जोधपुर, अलवर, सीकर, अजमेर और उदयपुर सहित कई जिलों में बड़े प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं और कई जगहों पर लाठीचार्ज की खबरें आईं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ-साथ पर्यावरण संगठनों और स्थानीय नागरिकों ने बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतरकर विरोध जताया।

क्या है नई परिभाषा और क्यों है विवाद?
सुप्रीम कोर्ट में चल रहे एक मामले में केंद्र सरकार ने हाल ही में हलफनामा दाखिल कर अरावली पर्वतमाला की परिभाषा सीमित करने की कोशिश की है। सरकार का कहना है कि अरावली क्षेत्र केवल वे हिस्से हैं जहां ऊंचाई समुद्र तल से 100 मीटर से अधिक हो या जहां पहले से नोटिफाइड संरक्षित क्षेत्र हैं। पर्यावरणविदों और विपक्ष का आरोप है कि इस परिभाषा से अरावली का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएगा।
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, अरावली राजस्थान की जल सुरक्षा, जैव विविधता और थार मरुस्थल के विस्तार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नई परिभाषा लागू होने पर बड़े क्षेत्रों में अवैध खनन, रियल एस्टेट प्रोजेक्ट और औद्योगिक गतिविधियां बढ़ सकती हैं, जिससे पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी।

प्रदर्शनों का स्वरूप और पुलिस कार्रवाई
सोमवार को जोधपुर में सबसे बड़ा प्रदर्शन हुआ जहां हजारों की संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता और सामाजिक संगठन जैसे ‘अरावली बचाओ संघर्ष समिति’ के सदस्य इकट्ठा हुए। प्रदर्शनकारी केंद्र सरकार और राज्य सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे। पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर रैली को रोकने की कोशिश की, जिसके बाद धक्का-मुक्की हुई और लाठीचार्ज करना पड़ा। कई कार्यकर्ताओं को चोटें आईं और कुछ को हिरासत में लिया गया।अलवर और सीकर में भी इसी तरह की झड़पें हुईं। अजमेर में प्रदर्शनकारियों ने मुख्य सड़क जाम कर दी, जिसे खाली कराने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। उदयपुर और सीकर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुए, लेकिन पुलिस की भारी तैनाती रही।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, “केंद्र की भाजपा सरकार अरावली को खनन माफिया के हवाले करना चाहती है। हम पर्यावरण और राजस्थान की जल सुरक्षा के लिए अंतिम सांस तक लड़ेंगे।” पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी सोशल मीडिया पर प्रदर्शनों का समर्थन किया और केंद्र की नीति को “पर्यावरण विरोधी” करार दिया।
दूसरी ओर, राज्य सरकार और केंद्र के सूत्रों का कहना है कि नई परिभाषा वैज्ञानिक आधार पर दी गई है और इससे विकास कार्यों में बाधा नहीं आएगी। पर्यावरण मंत्री ने कहा कि संरक्षित क्षेत्रों में खनन पर पहले की तरह ही प्रतिबंध रहेगा।
पृष्ठभूमि
अरावली पर विवाद दशकों पुराना है। 1992 से सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में अरावली क्षेत्र में खनन पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। 2002 के एक आदेश में पूरे अरावली इको-सेंसिटिव जोन को संरक्षण दिया गया था। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें समय-समय पर परिभाषा को सीमित करने की कोशिश करती रही हैं। पर्यावरण संगठनों का कहना है कि नई परिभाषा पिछले प्रतिबंधों को कमजोर कर देगी। पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि यदि यह परिभाषा लागू हुई तो राजस्थान में भूजल स्तर और तेजी से गिरेगा और जैव विविधता को गंभीर खतरा होगा।