जमशेदपुर, 29 दिसंबर 2025
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सोमवार को झारखंड के जमशेदपुर स्थित करनडीह के दिशोम जाहेरथान पहुंचीं और संताली भाषा की ओल चिकी लिपि के शताब्दी वर्ष (1925-2025) के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं। इस अवसर पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार भी मौजूद रहे।

कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक पूजा-अर्चना से हुई। राष्ट्रपति ने ओल चिकी लिपि के आविष्कारक पंडित रघुनाथ मुर्मू (गुरु गोमके) की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर 22वें संताली ‘परसी माहा’ एवं ओल चिकी शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन की शुरुआत संताली भाषा में नेहोर प्रार्थना गीत गाकर की, जिसने पूरे माहौल को भावुक और सुरमयी बना दिया। उन्होंने संताली भाषा में ही पूरा भाषण दिया और मातृभाषा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि अन्य भाषाएं सीखने में कोई बुराई नहीं, लेकिन अपनी मातृभाषा को कभी न भूलें। यह बच्चों के समग्र विकास के लिए जरूरी है।

राष्ट्रपति ने ओल चिकी लिपि को संथाली पहचान का मजबूत स्तंभ बताया और पंडित रघुनाथ मुर्मू के योगदान की सराहना की। उन्होंने संताली लेखकों और समाजसेवियों की तारीफ करते हुए कहा कि वे लिपि और भाषा के संरक्षण में अथक प्रयास कर रहे हैं। राष्ट्रपति ने संविधान के ओल चिकी लिपि में अनुवाद को महत्वपूर्ण कदम बताया और उम्मीद जताई कि भविष्य में ओल चिकी में अनुवाद टूल्स और एआई एप्लिकेशन भी विकसित होंगे।

कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने संताली साहित्य और ओल चिकी लिपि के उत्थान में योगदान देने वाले 12 प्रमुख साहित्यकारों, शिक्षकों और साधकों को सम्मानित किया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संताली भाषा-संस्कृति के संरक्षण का संकल्प दोहराया, जबकि राज्यपाल संतोष गंगवार ने संताली संस्कृति की सराहना की।
ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में देशभर से संताली साहित्यकार और समुदाय के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। राष्ट्रपति की उपस्थिति ने समारोह को ऐतिहासिक बना दिया, खासकर उनके संताली में गीत और भाषण ने सभी को गर्व से भर दिया। इसके बाद राष्ट्रपति एनआईटी जमशेदपुर के दीक्षांत समारोह में भी शामिल हुईं।
यह आयोजन संताली समाज के लिए गर्व का क्षण था, जहां राष्ट्रपति ने अपनी जड़ों से जुड़कर भाषा और संस्कृति के संरक्षण का संदेश दिया।