नई दिल्ली, 25 दिसंबर 2025
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को राष्ट्रपति भवन में एक विशेष समारोह में भारतीय संविधान के संथाली भाषा संस्करण का विमोचन किया। यह संस्करण संथाली की मूल लिपि ओल चिकी में तैयार किया गया है। राष्ट्रपति ने इसे संथाली समाज के लिए गर्व और खुशी का विषय बताया और कहा कि संथाली भाषा आदिवासी संस्कृति, परंपरा और पहचान की जीवंत अभिव्यक्ति है। इससे देश की बड़ी आबादी अपनी मातृभाषा में संविधान को पढ़ और समझ सकेगी, जिससे संवैधानिक अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी। भारतीय संविधान का संथाली भाषा (ओल चिकी लिपि में) अनुवाद एक सरकारी पहल के तहत किया गया है। यह कार्य केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय की टीम ने पूरा किया, जिसकी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विशेष रूप से सराहना की।
पहले (2022 में) पश्चिम बंगाल के सिधो-कान्हो-बिरसा विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर श्रीपति टुडू ने व्यक्तिगत पहल से संविधान का संथाली अनुवाद किया था, लेकिन हालिया सरकारी संस्करण (जिसका राष्ट्रपति ने विमोचन किया) मंत्रालय की टीम द्वारा तैयार किया गया आधिकारिक अनुवाद है।
समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति मुर्मू ने संथाली भाषा में कहा, “ओल चिकी लिपि में संथाली भाषा में भारतीय संविधान जारी करने के लिए मैं बहुत प्रसन्न हूं। यह सभी संथाली लोगों के लिए गर्व और खुशी का स्रोत है।” उन्होंने आगे कहा कि अब झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार और अन्य राज्यों में रहने वाले संथाली भाषी लोग अपनी लिपि और भाषा में संविधान को पूरी तरह समझ सकेंगे।
ओल चिकी लिपि की शताब्दी वर्ष में विशेष विमोचन
राष्ट्रपति ने इस वर्ष ओल चिकी लिपि की शताब्दी मनाए जाने का जिक्र किया। उन्होंने विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और उनकी टीम की सराहना की कि इस मील के पत्थर वर्ष में संविधान को ओल चिकी में उपलब्ध कराया गया। ओल चिकी लिपि को 1925 में पंडित रघुनाथ मुर्मू ने विकसित किया था, जो संथाली भाषा की आधिकारिक लिपि है। समारोह में उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन, केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल सहित कई प्रमुख व्यक्ति उपस्थित थे। उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रपति मुर्मू का आभार व्यक्त किया और कहा कि यह पहल उनके मार्गदर्शन में शुरू हुई थी। उन्होंने याद किया कि झारखंड की पूर्व राज्यपाल के रूप में द्रौपदी मुर्मू ने आदिवासी भाषाओं और संस्कृति के संवर्धन के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए थे।
संथाली भाषा का महत्व और पृष्ठभूमि
संथाली भारत की सबसे प्राचीन जीवंत भाषाओं में से एक है। इसे 2003 के 92वें संविधान संशोधन द्वारा आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। देश में लगभग 70 लाख से अधिक संथाली भाषी हैं, जो मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार में रहते हैं। यह पहल सरकार की उस प्रतिबद्धता को दर्शाती है जिसमें सभी 22 अनुसूचित भाषाओं में संविधान उपलब्ध कराना शामिल है। इससे आदिवासी समुदायों में संविधान के प्रति जुड़ाव बढ़ेगा और वे अपने मौलिक अधिकारों की बेहतर समझ विकसित कर सकेंगे।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू स्वयं संथाल आदिवासी समुदाय से हैं और उन्होंने हमेशा आदिवासी भाषाओं, संस्कृति तथा सशक्तिकरण पर जोर दिया है। यह विमोचन भारत की भाषाई विविधता को सम्मान देने और समावेशी विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।