पोप फ्रांसिस का 88 वर्ष की उम्र में हुआ निधन, लंबे समय से चल रहे थे बीमार

कैथोलिक चर्च के प्रमुख, 88 वर्षीय, पिछले कुछ महीनों से निमोनिया से जूझ रहे थे।

 

वेटिकन सिटी,

“आज सुबह 7:35 बजे, रोम के बिशप, फ्रांसिस, पिता के घर लौट आए। उनका पूरा जीवन प्रभु और उनके चर्च की सेवा के लिए समर्पित था,” फैरेल ने घोषणा में कहा। वेटिकन सिटी ने सोमवार को उनके निधन की आधिकारिक जानकारी दी।  रोमन कैथोलिक चर्च के पहले लैटिन अमेरिकी नेता पोप फ्रांसिस का शासनकाल विभाजन और तनाव से भरा रहा, क्योंकि उन्होंने अक्सर रूढ़िवादी संस्था को सुधारने की कोशिश की। अपने 12 साल के पोपत्व के दौरान उन्हें कई तरह की बीमारियाँ हुईं। वर्ष 2013 में कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च पद पोप की उन्हें उपाधि मिली थी।

धर्मगुरू पोप फ्रांसिस का जीवन सफर

अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में जन्में पोप फ्रांसिस का असली नाम जॉर्ज मारियो बेरगोलियो था। उनका जन्म दिसंबर 1936 में हुआ था। उनके माता-पिता इटली से आए प्रवासी थे। उनके पिता एक अकाउंटेंट थे और मां गृहिणी थीं। जॉर्ज ने शुरुआत में साइंस की पढ़ाई की, लेकिन आगे चलकर उनका रुझान धार्मिक जीवन की ओर बढ़ा और 1969 में वे पादरी बने और फिर स्पेन में धर्म की पढ़ाई की। 1973 में उन्हें अर्जेंटीना में जेसुइट समाज का प्रमुख बनाया गया। इसके बाद मार्च 2013 में उन्हें पोप चुन लिये गये और उन्होंने “फ्रांसिस” नाम दिया। वे इस पद तक पहुंचने वाले पहले लैटिन अमेरिकी, पहले जेसुइट और पहले पोप फ्रांसिस नामधारी बने। उनका चुनाव इसलिए भी खास रहा क्योंकि उन्होंने एक जीवित पोप (बेनेडिक्ट XVI) के बाद पद संभाला, जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दे दिया था। पोप फ्रांसिस का कार्यकाल गरीबों और जरूरतमंदों के प्रति सहानुभूति और धार्मिक सुधारों के लिए जाना गया। रियों और धार्मिक लोगों को यौन शोषण की जानकारी मिलने पर उसकी रिपोर्ट अनिवार्य की गई. 2023 में उन्होंने यह नियम आम चर्च नेताओं के लिए भी लागू किया. पोप फ्रांसिस को एक साधारण, जमीन से जुड़े और सुधारवादी धर्मगुरु के रूप में याद किया जाएगा.

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