रांची/दुमका, झारखंड
शिबू सोरेन, जिन्हें ‘दिशोम गुरु’ के नाम से जाना जाता है, झारखंड की राजनीति में एक युग का प्रतीक थे। उनका जीवन संघर्ष, आंदोलन और सत्ता का अनोखा संगम रहा। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और आदिवासी अस्मिता के प्रबल पक्षधर, शिबू सोरेन ने अपने पांच दशकों के राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे। उनकी मृत्यु (4 अगस्त 2025) के साथ ही झारखंड की राजनीति में एक युग का अंत हो गया। इस लेख में उनके राजनीतिक सफर की प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डाला गया है।प्रारंभिक जीवन और प्रेरणाशिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन बिहार (अब रामगढ़, झारखंड) के नेमरा गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता, सोबरन सोरेन, एक शिक्षक और गांधीवादी विचारक थे, जो महाजनों के खिलाफ आवाज उठाते थे। 1957 में, जब शिबू मात्र 13 वर्ष के थे, उनके पिता की महाजनों द्वारा हत्या कर दी गई। यह घटना उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बनी। इस दुखद घटना ने उनके भीतर अन्याय और शोषण के खिलाफ लड़ने की भावना को जागृत किया। उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और आदिवासियों के हक की लड़ाई में कूद पड़े।
धनकटनी और महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन
1960 के दशक में शिबू सोरेन ने महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ धनकटनी आंदोलन शुरू किया। उस समय आदिवासियों को अपनी फसल का बड़ा हिस्सा महाजनों को देना पड़ता था, और उनकी जमीनें अक्सर हड़प ली जाती थीं। शिबू ने गांव-गांव जाकर आदिवासियों को जागरूक किया और उनके साथ मिलकर फसलों को काटकर महाजनों के शोषण का विरोध किया। इस आंदोलन ने उन्हें आदिवासियों के बीच ‘दिशोम गुरु’ की उपाधि दिलाई।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का गठन
1972 में शिबू सोरेन ने बिनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की। इसका उद्देश्य आदिवासियों और वंचित समुदायों के हक की लड़ाई लड़ना और झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना था। JMM ने जल, जंगल और जमीन के मुद्दों को उठाकर आदिवासियों के बीच मजबूत आधार बनाया। शिबू सोरेन ने इस संगठन को एक सशक्त राजनीतिक शक्ति बनाया, जो राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन का हिस्सा है।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
शिबू सोरेन ने 1977 में टुंडी विधानसभा सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पहला चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद, उन्होंने संथाल परगना के दुमका को अपनी कर्मभूमि बनाया। 1980 में उन्होंने दुमका लोकसभा सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता पृथ्वीचंद्र किस्कू को हराकर पहली बार संसद में प्रवेश किया। इसके बाद, वे 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में दुमका से सांसद चुने गए। वे कुल आठ बार लोकसभा सांसद और तीन बार (1998, 2002, 2020) राज्यसभा सांसद रहे।
झारखंड आंदोलन और अलग राज्य का गठनशिबू सोरेन ने झारखंड को बिहार से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य बनाने के लिए दशकों तक आंदोलन चलाया। उनकी अगुवाई में JMM ने आदिवासियों में राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता पैदा की। 1995 में उन्होंने बिहार सरकार से झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद (JAAC) का गठन करवाया, जो अलग राज्य की दिशा में पहला कदम था। उनकी मेहनत और संघर्ष का परिणाम 15 नवंबर 2000 को सामने आया, जब झारखंड एक अलग राज्य बना।

मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्यकाल
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल हमेशा छोटा और अस्थिर रहा:
- 2005: 2 मार्च से 12 मार्च तक (10 दिन)
- 2008-2009: 27 अगस्त 2008 से 18 जनवरी 2009
- 2009-2010: 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010
उन्होंने केंद्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और तीन बार (2004, 2004-2005, 2006) कोयला मंत्री के रूप में कार्य किया। हालांकि, उनके कार्यकाल अक्सर विवादों और राजनीतिक अस्थिरता से प्रभावित रहे।
विवाद और चुनौतियाँ
शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन विवादों से भी घिरा रहा। उन पर कई गंभीर आरोप लगे, जिनमें शामिल हैं:
- 1975 चिरूडीह हत्याकांड: 11 लोगों की हत्या के आरोप में उन्हें नामजद किया गया, लेकिन 2008 में बरी कर दिया गया।
- 1994 शशि नाथ झा हत्या मामला: उनके निजी सचिव की हत्या के लिए 2006 में निचली अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया, लेकिन 2007 में दिल्ली हाईकोर्ट ने बरी कर दिया।
- 1993 नो-कॉन्फिडेंस मोशन: नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान “कैश फॉर वोट” केस में उन पर आरोप लगे।
इन विवादों के बावजूद, शिबू सोरेन का जनाधार कभी कम नहीं हुआ। उनके समर्थक उन्हें आदिवासियों के मसीहा के रूप में देखते थे।

पारिवारिक और राजनीतिक विरासत
शिबू सोरेन का परिवार झारखंड की राजनीति में सक्रिय रहा। उनके बड़े बेटे दुर्गा सोरेन जामा विधानसभा से विधायक थे, जिनकी मृत्यु 2009 में हो गई। उनके छोटे बेटे हेमंत सोरेन वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री और JMM के अध्यक्ष हैं। छोटे बेटे बसंत सोरेन विधायक और JMM युवा मोर्चा के अध्यक्ष हैं, जबकि पत्नी रूपी सोरेन और बहू सीता सोरेन भी राजनीति में सक्रिय हैं। शिबू सोरेन ने अप्रैल 2025 तक 38 वर्षों तक JMM के अध्यक्ष के रूप में नेतृत्व किया और बाद में उन्हें पार्टी का संस्थापक संरक्षक बनाया गया। 4 अगस्त 2025 को लंबी बीमारी के बाद दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में शिबू सोरेन का निधन हो गया। वे किडनी की समस्या और स्ट्रोक से पीड़ित थे। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कई अन्य नेताओं ने शोक व्यक्त किया। उनके बेटे हेमंत सोरेन ने कहा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।”
शिबू सोरेन का जीवन एक साधारण आदिवासी बालक से लेकर ‘दिशोम गुरु’ बनने तक का प्रेरणादायक सफर रहा। उन्होंने न केवल झारखंड के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि आदिवासी समाज को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनके संघर्ष, नेतृत्व और समर्पण ने झारखंड की राजनीति को नया आयाम दिया। उनकी विरासत उनके बेटे हेमंत सोरेन और JMM के माध्यम से जीवित रहेगी।