रांची, 21 दिसंबर 2025
झारखंड हाईकोर्ट ने मरीजों के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि अब किसी भी सरकारी या निजी अस्पताल में मरीजों को ब्लड उपलब्ध कराने के लिए रिप्लेसमेंट डोनेशन (ब्लड के बदले ब्लड) की प्रथा नहीं अपनाई जाए। यह प्रथा राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद (नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल – NBTC) की गाइडलाइंस और राष्ट्रीय रक्त नीति (नेशनल ब्लड पॉलिसी) के विपरीत है।मुख्य न्यायाधीश तर्लोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया। कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग को स्पष्ट निर्देश दिया कि मरीजों को स्वैच्छिक रक्तदान से प्राप्त ब्लड उपलब्ध कराया जाए, न कि मरीज के परिजनों से डोनर लाकर ब्लड रिप्लेस कराने की शर्त पर।
कोर्ट ने सभी निजी अस्पतालों और ब्लड बैंकों को भी नियमित रूप से रक्तदान शिविर आयोजित करने का आदेश दिया ताकि विभिन्न ब्लड ग्रुप की मांग पूरी की जा सके। सामाजिक कार्यकर्ता अतुल गेरा ने कोर्ट को बताया कि पहले की प्रथा में मरीज को ब्लड देने के लिए परिजनों से एक यूनिट ब्लड डोनेट कराना पड़ता था, जिसे अब पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा।
यह फैसला राज्य में हाल के उन मामलों की पृष्ठभूमि में आया है, जहां दूषित ब्लड ट्रांसफ्यूजन से थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को HIV संक्रमण हो गया था। कोर्ट ने पहले इन मामलों पर सख्त रुख अपनाते हुए ब्लड बैंकों की जांच और स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने के निर्देश दिए थे।राष्ट्रीय रक्त नीति के अनुसार, देश में केवल स्वैच्छिक और गैर-भुगतान आधारित रक्तदान को प्रोत्साहन दिया जाता है। NBTC की गाइडलाइंस भी रिप्लेसमेंट डोनेशन को हतोत्साहित करती हैं, क्योंकि इससे ब्लड की सुरक्षा और उपलब्धता पर असर पड़ता है।स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से मरीजों और उनके परिजनों को बड़ी राहत मिलेगी, खासकर आपात स्थितियों में। साथ ही, यह स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देगा और ब्लड बैंकों में सुरक्षित स्टॉक बनाए रखने में मदद करेगा।
राज्य सरकार ने कोर्ट के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया है। अब देखना यह होगा कि यह फैसला राज्य के सभी अस्पतालों में कितनी जल्दी लागू होता है।यह फैसला मरीजों के अधिकारों और सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।