देहरादून, 7 अक्टूबर 2025
उत्तराखंड में शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव होने जा रहा है। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेवानिवृत्त) ने उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक, 2025 को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक के लागू होने से राज्य में मौजूदा मदरसा बोर्ड का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और सभी मदरसों सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के शिक्षण संस्थानों को राज्य शिक्षा बोर्ड से संबद्धता अनिवार्य हो जाएगी। यह कदम शिक्षा प्रणाली को अधिक समान, समावेशी और आधुनिक बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस फैसले को ‘ऐतिहासिक’ करार देते हुए कहा कि इससे राज्य की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन आएंगे। उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट साझा करते हुए राज्यपाल का आभार जताया, “माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह जी (सेवानिवृत्त) को हृदय से धन्यवाद! अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक-2025 को मंजूरी देकर इस विधेयक को कानून बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया गया है। यह कदम राज्य की शिक्षा प्रणाली को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और गुणवत्तापूर्ण बनाने में सहायक सिद्ध होगा।”
विधेयक के प्रमुख प्रावधान: समान कानून सभी अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए
इस विधेयक के तहत उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण (Uttarakhand State Minority Education Authority) का गठन किया जाएगा, जो सभी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को मान्यता प्रदान करेगा। वर्तमान में अल्पसंख्यक शिक्षा का दायरा मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय तक सीमित था, लेकिन अब यह सुविधा सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदायों के संस्थानों तक विस्तारित हो जाएगी।
- मदरसों पर प्रभाव: सभी मदरसों को उत्तराखंड विद्यालय शिक्षा बोर्ड से संबद्धता प्राप्त करनी होगी। जुलाई 2026 के शैक्षणिक सत्र से राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा (NCF) और नई शिक्षा नीति (NEP 2020) का पालन अनिवार्य होगा।
- पाठ्यक्रम में बदलाव: मदरसों में विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान जैसे आधुनिक विषयों को शामिल करना होगा। साथ ही, तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर विशेष जोर दिया जाएगा।
- पंजीकरण और निगरानी: सभी संस्थानों को प्राधिकरण से मान्यता लेनी होगी, जिससे पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित होगी। गजट अधिसूचना जारी होने के बाद विधेयक पूर्ण रूप से लागू हो जाएगा।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि राज्य का प्रत्येक बच्चा – चाहे वह किसी भी वर्ग या समुदाय का हो – समान शिक्षा और समान अवसरों के साथ आगे बढ़े।” यह उत्तराखंड को देश का पहला राज्य बना देगा, जहां मदरसा बोर्ड को समाप्त कर अल्पसंख्यक संस्थानों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में एकीकृत किया गया है।
पृष्ठभूमि: कैबिनेट से संसद तक का सफर
यह विधेयक अगस्त 2025 में राज्य कैबिनेट द्वारा पारित किया गया था। कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में इस पर विस्तृत चर्चा हुई, जहां अल्पसंख्यक समुदायों की शिक्षा को मजबूत करने पर बल दिया गया। विधेयक का उद्देश्य अल्पसंख्यक संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना और सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देना है।
उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून काजमी ने इस निर्णय का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, “यह कदम सभी समुदायों के लिए लाभकारी होगा, जबकि धार्मिक शिक्षा को भी जारी रखा जाएगा।” बोर्ड के समाप्त होने से मदरसों को अब राज्य बोर्ड के दिशानिर्देशों का पालन करना होगा, जो छात्रों को बेहतर भविष्य के लिए सशक्त बनाएगा। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह विधेयक अल्पसंख्यक छात्रों को मुख्यधारा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। राज्य में लगभग 500 से अधिक मदरसे संचालित हैं, जहां हजारों छात्र पढ़ते हैं। इस बदलाव से इन छात्रों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे।मु ख्यमंत्री कार्यालय (CMO) के अनुसार, यह कदम शिक्षा में एकरूपता लाने और सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया है। विपक्षी दलों ने भी इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है, हालांकि कुछ ने कार्यान्वयन में चुनौतियों का उल्लेख किया है।उत्तराखंड सरकार का यह प्रयास राज्य को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। गजट अधिसूचना के बाद प्राधिकरण का गठन होगा और संस्थानों को पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू करनी होगी।