रांची, 17 दिसंबर 2025:
वीमेन एंड जेंडर रिसोर्स सेंटर (WGRC) ने आदिवासी महिला नेटवर्क (AWN) के सहयोग से आज इंडिजिनस नेविगेटर नेशनल सर्वे (2023) की सारांश रिपोर्ट का विमोचन रांची स्थित होटल जेनिस्टा इन में आयोजित ब्रीफिंग के दौरान किया। यह रिपोर्ट भारत में आदिवासी (आदिवासी/इंडिजिनस) समुदायों के अधिकारों की स्थिति पर आधारित एक व्यापक, समुदाय-जनित मूल्यांकन प्रस्तुत करती है।
इंडिजिनस नेविगेटर नेशनल सर्वे 2023 भारत के सभी 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों को सम्मिलित करता है, जिसमें 705 अधिसूचित आदिवासी समुदाय शामिल हैं, जिनकी अनुमानित आबादी लगभग 10.4 करोड़ (देश की कुल जनसंख्या का 8.6%) है। यह सर्वेक्षण संयुक्त राष्ट्र आदिवासी जनों के अधिकारों की घोषणा (UNDRIP) के ढांचे पर आधारित है तथा 12 विषयगत क्षेत्रों में आदिवासी अधिकारों की मान्यता और क्रियान्वयन का आकलन करता है। इनमें आत्मनिर्णय, सांस्कृतिक अखंडता, भूमि एवं प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार तथा सार्वजनिक जीवन में भागीदारी प्रमुख हैं।
प्रमुख निष्कर्ष
रिपोर्ट भारत में आदिवासी अधिकारों की एक मिश्रित तस्वीर प्रस्तुत करती है:
1. न्याय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शिक्षा, रोजगार तथा आर्थिक एवं सामाजिक अधिकारों जैसे क्षेत्रों में भारत का प्रदर्शन एशियाई औसत की तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर पाया गया।
2. वहीं सांस्कृतिक अखंडता, भूमि, क्षेत्र और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार, तथा सार्वजनिक जीवन में भागीदारी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में गंभीर खामियां सामने आई हैं।
3. सर्वेक्षण में आदिवासी भाषाओं और पारंपरिक ज्ञान पर बढ़ते खतरों, भूमि से बेदखली और जबरन विस्थापन, तथा मुक्त, पूर्व और सूचित सहमति (FPIC) के अपर्याप्त क्रियान्वयन को रेखांकित किया गया है।
4. स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े संकेतक चिंताजनक बने हुए हैं, जिनमें उच्च ड्रॉपआउट दर, मातृभाषा में शिक्षा की कमी, अपर्याप्त स्वास्थ्य अवसंरचना तथा आदिवासी क्षेत्रों में शिशु और बाल मृत्यु दर का अधिक होना शामिल है।
5. संवैधानिक संरक्षणों के बावजूद, आदिवासी समुदायों को न्याय तक पहुंच, कानूनी संरक्षण, और निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं में सार्थक भागीदारी के लिए निरंतर बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
अधिकार पक्षधरता हेतु समुदाय-आधारित साक्ष्य
इंडिजिनस नेविगेटर ढांचा समुदाय-जनित आंकड़ों पर विशेष बल देता है, जिससे आदिवासी समुदाय अपनी जमीनी वास्तविकताओं का दस्तावेजीकरण कर सकें और इन साक्ष्यों का उपयोग पक्षधरता, नीति संवाद और जवाबदेही के लिए कर सकें। निष्कर्ष यह स्पष्ट करते हैं कि भारत ने सामाजिक-आर्थिक समावेशन की दिशा में कुछ प्रगति की है, लेकिन आदिवासी समुदायों के सांस्कृतिक, राजनीतिक और क्षेत्रीय अधिकारों की पर्याप्त सुरक्षा अब भी सुनिश्चित नहीं हो पाई है।
प्रमुख अनुशंसाएं
रिपोर्ट निम्नलिखित तात्कालिक कदमों की सिफारिश करती है:
1. परंपरागत संस्थाओं और स्वशासन प्रणालियों को कानूनी मान्यता देना और उन्हें सशक्त करना।
2. आदिवासी भाषाओं का संरक्षण एवं संवर्धन तथा मातृभाषा आधारित, सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त शिक्षा को बढ़ावा देना।
3. भूमि और वन अधिकारों को सुरक्षित करना तथा सहमति और पर्याप्त मुआवज़े के बिना जबरन विस्थापन को रोकना।
4. आदिवासी क्षेत्रों में सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और समुदाय-आधारित स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से स्वास्थ्य तक पहुंच में सुधार करना।
5. नीति निर्माण और विकास योजना में आदिवासी समुदायों, विशेषकर महिलाओं, की सार्थक भागीदारी सुनिश्चित करना।
आगे की राह
WGRC ने जोर दिया कि यह रिपोर्ट अधिकार-आधारित, समुदाय-नेतृत्व वाले विकास के लिए एक रोडमैप के रूप में कार्य करे। UNDRIP के अनुरूप राष्ट्रीय कानूनों और नीतियों का समन्वय, निगरानी तंत्र को मजबूत करना, तथा आदिवासी समुदायों, नागरिक समाज और राज्य के बीच समावेशी संवाद को बढ़ावा देना—भारत में आदिवासी न्याय को आगे बढ़ाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। WGRC के एक प्रतिनिधि ने कहा, “यह रिपोर्ट केवल आंकड़ों का संकलन नहीं है—यह आदिवासी समुदायों की आवाज़ है। यह जवाबदेही की मांग करती है और ऐसे विकास पथ का आह्वान करती है जो अधिकारों, संस्कृति और आत्मनिर्णय का सम्मान करे।”