पोर्ट ब्लेयर, 23 सितंबर 2025
अंडमान सागर के हृदय में स्थित बैरन द्वीप (Barren Island) पर स्थित भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी एक बार फिर से जाग उठा है। 20 सितंबर 2025 को हुए विस्फोट के दौरान लावा की लालिमा और राख के गुबारों ने आसमान को चीर दिया, जिसका दुर्लभ वीडियो भारतीय नौसेना के एक युद्धपोत ने अपनी रूटीन गश्त के दौरान रिकॉर्ड किया। यह विस्फोट द्वीप के ऊत्तरी हिस्से से शुरू हुआ, जहां लावा प्रवाह और राख उत्सर्जन की पुष्टि उपग्रह डेटा से हुई है।
विस्फोट का विवरण: आग का फव्वारा और राख का बादल
भारतीय नौसेना के युद्धपोत से कैद किए गए वीडियो में ज्वालामुखी के 354 मीटर ऊंचे शिखर से लावा के फव्वारे उड़ते दिखाई दे रहे हैं, जो रात के अंधेरे में आकाश को रोशन कर रहे थे। विस्फोट के दौरान राख के गुबार लगभग 1.5 किलोमीटर ऊंचाई तक पहुंचे, जो पश्चिमी दिशा में बहते नजर आए। भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ऑफ इंडिया (जीएसआई) के अनुसार, यह विस्फोट ज्वालामुखी के दिसंबर 2022 से चल रहे सक्रिय चक्र का हिस्सा है, जिसमें थर्मल गतिविधि और लावा प्रवाह शामिल हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह विस्फोट छोटे-छोटे एपिसोड में हो रहा है, जो 5-10 मिनट तक चलते हैं। दिन के समय केवल राख के बादल दिखाई देते हैं, जबकि रात में लावा की लाल चमक स्पष्ट रूप से नजर आती है। सैटेलाइट इमेजरी से पुष्टि हुई है कि उत्तर दिशा में लावा प्रवाह या टेफ्रा (ज्वालामुखी कण) का उत्सर्जन हुआ है।
बैरन द्वीप: भारत का ‘आग का द्वीप’
बैरन द्वीप अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के पूर्वी हिस्से में स्थित एक निर्जन द्वीप है, जो पोर्ट ब्लेयर से लगभग 138 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में है। यह द्वीप सुमात्रा से म्यांमार तक फैले ज्वालामुखीय चाप का हिस्सा है, जहां भारतीय प्लेट बर्मा माइक्रोप्लेट के नीचे धंस रही है। द्वीप का क्षेत्रफल मात्र 3 किलोमीटर है, और इसका केंद्रीय भाग एक 2 किलोमीटर चौड़े कैल्डेरा से घिरा है, जिसकी दीवारें 250-350 मीटर ऊंची हैं।
यह ज्वालामुखी भारतीय उपमहाद्वीप का एकमात्र पुष्ट सक्रिय ज्वालामुखी है। इसका इतिहास प्राचीन है – सबसे पुरानी सतही लावा धाराएं 1.6 मिलियन वर्ष पुरानी हैं, जबकि द्वीप के नीचे की महासागरीय परत लगभग 106 मिलियन वर्ष पुरानी है। पहला दर्ज विस्फोट 1787 में हुआ था, उसके बाद 1789, 1795, 1803-04 और 1852 में हुए। 19वीं सदी के बाद लंबे अंतराल के बाद 1991 में फिर सक्रियता शुरू हुई, जो छह महीने चली और द्वीप की जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंचाया।
ऐतिहासिक विस्फोट: एक नजर में
वर्ष
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विस्फोट का प्रकार
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प्रभाव
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1787
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पहला दर्ज विस्फोट
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कैल्डेरा का निर्माण
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1991
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छह महीने लंबा विस्फोट
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वन्यजीवों पर विनाशकारी प्रभाव
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1994-95
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लावा प्रवाह और राख उत्सर्जन
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पश्चिमी तट पर लावा पहुंचा
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2005-07
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2004 सुनामी से जुड़ा
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ज्वालामुखी शंकु की ऊंचाई बढ़ी
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2017
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छोटे एपिसोड, VEI 2
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राख और लावा फव्वारे
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2022-वर्तमान
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थर्मल गतिविधि और लावा प्रवाह
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सतत सक्रियता
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वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरणीय प्रभाव
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (एनआईओ) के वैज्ञानिकों के अनुसार, यह विस्फोट क्षेत्रीय भूकंपीय गतिविधि से जुड़ा हो सकता है। अंडमान बैक-आर्क रिज पर दबाव रिलीज से मैग्मा का मूवमेंट हो रहा है, जो छोटे ज्वालामुखी-भूकंपीय भूकंप (मैग्नीट्यूड <4.0) पैदा कर सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह विस्फोट हवाई यात्रा या शिपिंग के लिए तत्काल खतरा नहीं है, लेकिन राख के कारण आसपास के क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
द्वीप पर 1991 के विस्फोट ने पक्षी प्रजातियों की संख्या घटा दी थी – पहले 16 प्रजातियां थीं, जो घटकर 6 रह गईं। कीटों और चूहों की कुछ प्रजातियां अभी भी जीवित हैं, लेकिन लावा प्रवाह से नई काली तट रेखा बन रही है। वैज्ञानिक ड्रोन सर्वेक्षण से गैस उत्सर्जन की निगरानी कर रहे हैं।
नौसेना की भूमिका और पर्यटन का भविष्य
भारतीय नौसेना ने इस विस्फोट को “संयोगजनक अलर्ट” बताते हुए जीएसआई को सूचित किया। नौसेना के अधिकारियों ने कहा कि यह रिकॉर्डिंग वैज्ञानिक प्रतिक्रिया को तेज करने में मददगार साबित हुई। द्वीप पर्यटकों के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन आसपास के जल स्नॉर्कलिंग और स्कूबा डाइविंग के लिए प्रसिद्ध हैं। इको-टूरिस्ट अब सुरक्षित दूरी से इस प्राकृतिक चमत्कार को देखने का सपना देख रहे हैं।बैरन द्वीप पृथ्वी की आंतरिक उथल-पुथल की याद दिलाता है – एक ऐसा द्वीप जहां आग और समुद्र का मिलन होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगले विस्फोटों की निगरानी जारी रहेगी, ताकि इस ‘आग के द्वीप’ की रहस्यमयी दुनिया को बेहतर समझा जा सके।