पेसा नियमावली पर रघुवर दास का हेमंत सरकार पर तीखा हमला: आदिवासियों को ‘लॉलीपॉप’ दिखाने का आरोप

रांची, 30 दिसंबर 2025

 

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुवर दास ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार द्वारा हाल ही में मंजूर की गई पेसा (पंचायती राज विस्तार अनुसूचित क्षेत्रों में) नियमावली 2025 पर जोरदार हमला बोला है। भाजपा प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में दास ने आरोप लगाया कि यह नियमावली पेसा अधिनियम 1996 की मूल भावना और प्रावधानों के पूरी तरह विपरीत है, जिससे आदिवासी समाज की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था कमजोर होगी और उन्हें सिर्फ ‘लॉलीपॉप’ दिखाया जा रहा है।

रघुवर दास ने कहा कि समाचार पत्रों में प्रकाशित जानकारी के अनुसार सरकार ने ग्राम सभा की परिभाषा में परंपरागत जनजातीय व्यवस्था और रूढ़िगत नेतृत्व को सीमित कर दिया है। जबकि पेसा अधिनियम में स्पष्ट है कि अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा का गठन, संचालन और प्रतिनिधित्व जनजातीय समुदायों की परंपराओं, रीति-रिवाजों तथा सामाजिक-धार्मिक प्रथाओं के अनुरूप होना चाहिए।

उन्होंने विभिन्न आदिवासी समुदायों की पारंपरिक नेतृत्व व्यवस्था का उदाहरण देते हुए कहा कि संथाल में मांझी-परगना, हो में मुंडा-मानकी-दिउरी, खड़िया में ढोकलो-सोहोर, मुंडा में हातु मुंडा-पड़हा राजा-पाहन, उरांव में महतो-पड़हा (राजा)-पाहन और भूमिज में मुंडा-सर्दार-नापा-डाकुआ जैसे पद सदियों से मान्य हैं, लेकिन नई नियमावली में इनकी अनदेखी की गई है।

पूर्व मुख्यमंत्री ने पेसा अधिनियम की धारा 4(क), 4(ख), 4(ग) और 4(घ) का हवाला देते हुए कहा कि इनमें ग्राम सभा को पारंपरिक प्रबंधन के अनुरूप अधिकार दिए गए हैं, लेकिन राज्य सरकार ने इन्हें नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या नई नियमावली में ग्राम सभा की अध्यक्षता गैर-पारंपरिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति करेंगे? इस पर स्पष्टता न होना गंभीर चिंता का विषय है।

दास ने आगे कहा कि पेसा कानून ग्राम सभा को लघु खनिज, बालू घाट, वन उत्पाद और जल स्रोतों पर पूर्ण नियंत्रण देता है, लेकिन क्या वास्तव में ये अधिकार मिलेंगे या सरकार का नियंत्रण बना रहेगा?

उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि कैबिनेट में ऐसी नियमावली बनाकर आदिवासी समाज की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की जा रही है। पेसा का उद्देश्य आदिवासी व्यवस्था को समाप्त करना नहीं, बल्कि उसे संरक्षित और सशक्त बनाना है, ताकि उनकी सांस्कृतिक पहचान और संसाधनों पर अधिकार बरकरार रहे।

अंत में रघुवर दास ने जनभावनाओं के अनुरूप नियमावली को शीघ्र जनता के समक्ष जारी करने की मांग की। प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूर्व विधायक रामकुमार पाहन, योगेंद्र प्रताप सिंह, अशोक बड़ाईक और रवि मुंडा भी उपस्थित थे।

पृष्ठभूमि: 23 दिसंबर 2025 को हेमंत सोरेन कैबिनेट ने पेसा नियमावली 2025 को मंजूरी दी थी, जिसे आदिवासी संगठनों ने स्वागत किया है। सरकार का दावा है कि इससे ग्राम सभाएं अधिक सशक्त होंगी और पारंपरिक व्यवस्था को तरजीह मिलेगी। हालांकि, विपक्ष इसे अधूरा और मूल भावना के विपरीत बता रहा है।

 

 

 

 

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