रांची/चाईबासा, 15 अक्टूबर 2025
झारखंड के घने जंगलों से घिरे सारंडा क्षेत्र को वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर स्थानीय आदिवासी समुदाय में भारी आक्रोश फैल गया है। मंगलवार को चाईबासा में निकाली गई विशाल रैली ने इस विवाद को नई ऊंचाई दे दी, जहां हजारों आदिवासी महिलाएं-पुरुष पारंपरिक हथियारों के साथ सड़कों पर उतर आए। उधर, राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव में कैबिनेट बैठक में 314 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अभ्यारण्य बनाने का प्रस्ताव मंजूर कर लिया है। यह कदम स्थानीय निवासियों के विस्थापन की आशंका को बढ़ा रहा है, जिससे आंदोलन की धमकी तेज हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश: पर्यावरण संरक्षण की प्राथमिकता
सारंडा जंगल, जो पश्चिमी सिंहभूम जिले में फैला है, जैव विविधता का खजाना है। यहां हाथी, बाघ और अन्य दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं। पर्यावरणविद् डॉ. आरके सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 8 अक्टूबर 2025 को झारखंड सरकार को एक सप्ताह के भीतर अभ्यारण्य घोषित करने का आदेश दिया था। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि राज्य सरकार अनुपालन नहीं करती, तो वह स्वयं ‘रिट ऑफ मंडेमस’ जारी कर सकती है। यह मामला 2022 से चला आ रहा है, जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 400 वर्ग किमी क्षेत्र को अभ्यारण्य बनाने का निर्देश दिया था। हालांकि, मूल प्रस्ताव में केवल 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल था, लेकिन अब 314 वर्ग किमी (लगभग 57,000 हेक्टेयर) को कवर किया जा रहा है। कोर्ट का यह फैसला पर्यावरण संरक्षण को मजबूत करने का प्रयास है, लेकिन स्थानीय आदिवासियों का कहना है कि यह उनकी आजीविका और सांस्कृतिक विरासत पर सीधा प्रहार है। वन (भारतीय अधिकारों का मान्यता) अधिनियम, 2006 (FRA) के तहत इनके वन अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए, लेकिन आशंका है कि अभ्यारण्य घोषणा से खनन, खेती और आवास पर प्रतिबंध लग जाएगा।
चाईबासा रैली: आदिवासी एकजुट, नाकेबंदी की चेतावनी
विवाद के केंद्र में चाईबासा मंगलवार को उबाल पर था। आदिवासी मुंडा समाज विकास समिति, आदिवासी मूलवासी समिति और कोल्हान के अन्य संगठनों ने संयुक्त रूप से ‘महा जन आक्रोश रैली’ का आयोजन किया। गांधी मैदान से शुरू होकर रैली खनन पदाधिकारी कार्यालय और उपायुक्त कार्यालय तक पहुंची, जहां ज्ञापन सौंपा गया। रैली में शामिल हजारों आदिवासी – ज्यादातर हो, मुंडा और संथाल समुदाय के – ने “जय झारखंड, केंद्र सरकार होश में आओ” और “सारंडा को सेंचुरी घोषित करना बंद करो” जैसे नारे लगाए। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में आगे-आगे चल रही थीं, जबकि पुरुष धनुष-बाण जैसे हथियारों के साथ। समिति के केंद्रीय अध्यक्ष बुधराम लागुरी ने कहा, “सारंडा हमारे पूर्वजों की धरोहर है। इस पर सरकारी दखल बर्दाश्त नहीं। यदि सुप्रीम कोर्ट पुनर्विचार नहीं करता, तो 25 अक्टूबर से कोल्हान-सारंडा में पूर्ण आर्थिक नाकेबंदी होगी।” पूर्व में सितंबर 2025 में रोवांम और छोटा नागरा में भी जनसभाएं हुईं, जहां 2,500 से अधिक ग्रामीणों ने विस्थापन की आशंका जताई।
झारखंड कैबिनेट की स्वीकृति: विस्थापन पर चर्चा, लेकिन आश्वासन अधर में
दूसरी ओर, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में 14 अक्टूबर को रांची में हुई कैबिनेट बैठक में वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी गई। बैठक में कुल 24 एजेंडों पर मुहर लगी, लेकिन सारंडा मुद्दे पर विस्थापन, पुनर्वास और FRA कानूनों की गारंटी पर गहन चर्चा हुई। सीएम सोरेन ने मीडिया से कहा, “सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का सम्मान करते हुए 314 वर्ग किमी क्षेत्र अभ्यारण्य बनेगा, लेकिन स्थानीय अधिकार सुरक्षित रहेंगे।” वन मंत्री दीपक बिरुवा ने पहले ही घोषणा की थी कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में जनभावनाओं को रखेगी।हालांकि, ग्रामीणों का आरोप है कि खनन क्षेत्रों को शामिल करने से उनकी आजीविका प्रभावित होगी। सारंडा में 26 से अधिक गांव प्रभावित हो सकते हैं, जहां FRA दावों का सत्यापन लंबित है।
आगे की राह: संवाद या संघर्ष?
यह विवाद पर्यावरण बनाम आदिवासी अधिकारों की जंग का प्रतीक बन चुका है। सरकार ने ग्रामीणों की राय लेने का दावा किया है, लेकिन रैली ने साफ संकेत दिया कि बिना सहमति के कोई कदम बर्दाश्त नहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 (LARR) के तहत मुआवजा सुनिश्चित किया जाए। यदि आंदोलन भड़का, तो कोल्हान क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां ठप हो सकती हैं।सारंडा का भविष्य अब सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई और सरकार-आदिवासी संवाद पर निर्भर करता है। फिलहाल, चाईबासा की सड़कें आक्रोश की गूंज से गूंज रही हैं।