रांची, झारखंड
झारखंड के दिग्गज आदिवासी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर सोमवार शाम को दिल्ली से रांची लाया गया और इसे उनके मोराबादी स्थित आवास पर रखा गया है। सोमवार को शाम 6:40 बजे उनके विमान की लैंडिंग हुई। विमान की लैंडिंग के साथ ही बिरसा मुंडा एयरपोर्ट क्षेत्र ‘शिबू सोरेन अमर रहे’ के नारे से गूंज उठा। उनके निधन के बाद से ही उनके समर्थकों और आम जनता में गहरा शोक व्याप्त है। आज सुबह से ही मोराबादी आवास पर दर्शन के लिए भारी संख्या में लोग जुट रहे हैं, जिससे जनसैलाब उमड़ पड़ा है।शिबू सोरेन, जिन्हें प्यार से ‘दिशोम गुरु’ के नाम से जाना जाता था, का 81 वर्ष की आयु में सोमवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए आज सुबह 10 बजे झारखंड विधानसभा में रखा जाएगा, इसके बाद उनकी अंतिम यात्रा उनके पैतृक गांव नेमरा, रामगढ़ के लिए निकलेगी, जहां उनका अंतिम संस्कार होगा।मोराबादी आवास पर मौजूद लोगों में भावुकता देखी जा रही है, क्योंकि शिबू सोरेन ने झारखंड राज्य के गठन और आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए जीवन भर संघर्ष किया। राज्य सरकार ने उनके सम्मान में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है, और सभी सरकारी कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं।इस बीच, उनके बेटे और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जनता से शांति बनाए रखने की अपील की है।
हेमंत के पोस्ट “मैं कठिन दौर से गुजर रहा हूं।”
मैं अपने जीवन के सबसे कठिन दिनों से गुज़र रहा हूँ।
मेरे सिर से सिर्फ पिता का साया नहीं गया,
झारखंड की आत्मा का स्तंभ चला गया।
मैं उन्हें सिर्फ ‘बाबा’ नहीं कहता था वे मेरे पथप्रदर्शक थे,
मेरे विचारों की जड़ें थे,
और उस जंगल जैसी छाया थे जिसने हजारों-लाखों झारखंडियों को
धूप और अन्याय से बचाया।
मेरे बाबा की शुरुआत बहुत साधारण थी।
नेमरा गांव के उस छोटे से घर में जन्मे,
जहाँ गरीबी थी, भूख थी, पर हिम्मत थी।
बचपन में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया
जमींदारी के शोषण ने उन्हें एक ऐसी आग दी
जिसने उन्हें पूरी जिंदगी संघर्षशील बना दिया।
मैंने उन्हें देखा है हल चलाते हुए,
लोगों के बीच बैठते हुए,
सिर्फ भाषण नहीं देते थे,
लोगों का दुःख जीते थे।
बचपन में जब मैं उनसे पूछता था:
“बाबा, आपको लोग दिशोम गुरु क्यों कहते हैं?”
तो वे मुस्कुराकर कहते: “क्योंकि बेटा, मैंने सिर्फ उनका दुख समझा
और उनकी लड़ाई अपनी बना ली।”
वो उपाधि न किसी किताब में लिखी गई थी,
न संसद ने दी –
झारखंड की जनता के दिलों से निकली थी।
‘दिशोम’ मतलब समाज, ‘गुरु’ मतलब जो रास्ता दिखाए।
और सच कहूं तो
बाबा ने हमें सिर्फ रास्ता नहीं दिखाया,
हमें चलना सिखाया।
बचपन में मैंने उन्हें सिर्फ़ संघर्ष करते देखा,
बड़े बड़ों से टक्कर लेते देखा
मैं डरता था पर बाबा कभी नहीं डरे।
वे कहते थे:
“अगर अन्याय के खिलाफ खड़ा होना अपराध है, तो मैं बार-बार दोषी बनूंगा।”
बाबा का संघर्ष कोई किताब नहीं समझा सकती।
वो उनके पसीने में, उनकी आवाज़ में,
और उनकी चप्पल से ढकी फटी एड़ी में था।
जब झारखंड राज्य बना,
तो उनका सपना साकार हुआ
पर उन्होंने कभी सत्ता को उपलब्धि नहीं माना।
उन्होंने कहा:
“ये राज्य मेरे लिए कुर्सी नहीं यह मेरे लोगों की पहचान है।”
आज बाबा नहीं हैं,
पर उनकी आवाज़ मेरे भीतर गूंज रही है।
मैंने आपसे लड़ना सीखा बाबा, झुकना नहीं।
मैंने आपसे झारखंड से प्रेम करना सीखा
बिना किसी स्वार्थ के।
अब आप हमारे बीच नहीं हो,
पर झारखंड की हर पगडंडी में आप हो।
हर मांदर की थाप में,
हर खेत की मिट्टी में,
हर गरीब की आंखों में आप झांकते हो।
आपने जो सपना देखा
अब वो मेरा वादा है।
मैं झारखंड को झुकने नहीं दूंगा,
आपके नाम को मिटने नहीं दूंगा।
आपका संघर्ष अधूरा नहीं रहेगा।
बाबा, अब आप आराम कीजिए।
आपने अपना धर्म निभा दिया।
अब हमें चलना है
आपके नक्शे-कदम पर।
झारखंड आपका कर्ज़दार रहेगा।
मैं, आपका बेटा,
आपका वचन निभाऊंगा।
वीर शिबू जिंदाबाद – ज़िन्दाबाद, जिंदाबाद
दिशोम गुरु अमर रहें।
जय झारखंड, जय जय झारखंड।
