नक्सलवाद को बड़ा झटका: पोलित ब्यूरो सदस्य सोनू दादा उर्फ भूपति सहित 61 नक्सलियों का महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में आत्मसमर्पण

गढ़चिरौली (महाराष्ट्र), 14 अक्टूबर 2025
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में सक्रिय नक्सलवाद को आज एक करारा झटका लगा है। प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमिटी के वरिष्ठ सदस्य मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ सोनू दादा उर्फ भूपति ने महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली जिले में पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। उनके साथ कुल 61 नक्सली कैडर, जिनमें महिलाएं और निचले स्तर के ऑपरेटिव शामिल हैं, मुख्यधारा में लौट आए। इस समूह ने 54 हथियारों के साथ हथियार डाल दिए, जो नक्सली संगठन की कमजोर होती पकड़ का स्पष्ट संकेत है।
यह घटना महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के पुलिस मुख्यालय में सोमवार रात देर से हुई, जहां भूपति और उनके साथी पहुंचे। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, यह आत्मसमर्पण नक्सलियों के आंतरिक कलह और सरकारी पुनर्वास नीतियों की सफलता का परिणाम है। भूपति (उम्र 69 वर्ष), जो संगठन के प्रमुख रणनीतिकारों में से एक थे, ने आत्मसमर्पण के दौरान शांति और संवाद की अपील की। उन्होंने कहा कि जन समर्थन की कमी और सैकड़ों कैडरों के नुकसान के कारण सशस्त्र आंदोलन असफल साबित हो रहा है।
भूपति का नक्सली सफर: 50 वर्षों की गुरिल्ला जिंदगी का अंत
भूपति, जो आंध्र प्रदेश के निवासी हैं, ने 1970 के दशक में नक्सली आंदोलन में कदम रखा था। वे भाकपा (माओवादी) के प्रवक्ता के रूप में भी सक्रिय रहे और महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर प्लाटून ऑपरेशनों का नेतृत्व करते थे। उनकी पत्नी तारक्का (उर्फ विमला सिडम) ने जनवरी 2025 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के समक्ष आत्मसमर्पण किया था, जहां उन्हें 60 लाख रुपये का पैकेज और आवास प्रदान किया गया। तारक्का पर एक करोड़ रुपये का इनाम था, जो उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
भूपति पर केंद्र सरकार ने 45 लाख रुपये का इनाम घोषित किया था। वे संगठन के वैचारिक प्रमुख थे और छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ जैसे दुर्गम क्षेत्रों से बाहरी दुनिया का संपर्क जोड़ते थे। हाल के महीनों में संगठन के शीर्ष नेतृत्व से मतभेदों के कारण वे अलग-थलग पड़ गए थे। सितंबर 2025 में जारी एक प्रेस रिलीज में उन्होंने हथियार डालने का संकेत दिया था, जिसने अन्य नक्सलियों को प्रेरित किया।
इस आत्मसमर्पण में 10 डिविजनल कमिटी सदस्य भी शामिल हैं, जो नक्सली नेटवर्क के लिए बड़ा नुकसान है। आत्मसमर्पित कैडरों को फिलहाल पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है, जहां से सुरक्षा बलों को नक्सली ठिकानों और योजनाओं की महत्वपूर्ण जानकारी मिलने की उम्मीद है।
बस्तर और गढ़चिरौली पर असर: विकास की नई राह
गढ़चिरौली, जो 1970 के दशक से नक्सली विद्रोह का गढ़ रहा है, अब छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र से सीधे जुड़ा हुआ है। यह आत्मसमर्पण न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे ‘रेड कॉरिडोर’ के लिए मील का पत्थर है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसे ऐतिहासिक बताते हुए कहा, “31 मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद उखाड़ फेंकने का लक्ष्य अब साकार होता नजर आ रहा है। बस्तर क्षेत्र में तेजी से विकास होगा।”केंद्र सरकार की ‘नक्सल सरेंडर एंड रिहैबिलिटेशन पॉलिसी’ ने इस सफलता में अहम भूमिका निभाई है। नीति के तहत आत्मसमर्पित नक्सलियों को कानूनी छूट, वित्तीय सहायता और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। गढ़चिरौली प्रशासन ने सुरक्षा बढ़ा दी है, जबकि सिविल सोसाइटी संगठन आत्मसमर्पितों के मानवीय व्यवहार की मांग कर रहे हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ को महाराष्ट्र से जोड़ने के लिए 21.5 किलोमीटर सड़क परियोजना को मंजूरी दी है, जो विकास को गति देगी।नक्सलवाद के खिलाफ अभियान की सफलता का संकेतकेंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के 2026 तक नक्सल-मुक्त भारत के विजन को यह घटना मजबूत कर रही है। पिछले कुछ महीनों में गढ़चिरौली में लगातार आत्मसमर्पण हो रहे हैं, जो सुरक्षा बलों की सघन कार्रवाई और जन-केंद्रित नीतियों का नतीजा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भूपति जैसे शीर्ष नेताओं का अलग होना संगठन की कमान को और कमजोर करेगा। हालांकि, पुलिस ने सतर्क रहने की सलाह दी है, क्योंकि कुछ सशस्त्र नक्सली अभी भी सक्रिय हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *