चाईबासा, 25 सितंबर 2025
झारखंड में नक्सलवाद के खिलाफ एक और बड़ी सफलता हासिल हुई है। पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा में आज भाकपा (माओवादी) संगठन से जुड़े 10 सक्रिय नक्सलियों ने पुलिस महानिदेशक (DGP) अनुराग गुप्ता के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। यह घटना राज्य सरकार की सशक्त प्रत्यर्पण एवं पुनर्वास नीति की सफलता का प्रतीक है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मुख्यधारा से जुड़ने के इच्छुक लोगों को नई जिंदगी का अवसर प्रदान करती है।

आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों का विवरण
आज गुरुवार को चाईबासा के पुलिस मुख्यालय में आयोजित सामूहिक आत्मसमर्पण समारोह में ये 10 नक्सली, जिनमें पुरुष और महिला कैडर शामिल हैं, ने अपने हथियार जमा कर दिए। आत्मसमर्पण करने वालों में संगठन के विभिन्न स्तरों के सदस्य हैं, जो वर्षों से नक्सली गतिविधियों में सक्रिय थे। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों में एरिया कमेटी सदस्य रांदो बोइपाई उर्फ कांति बोईपाई, दस्ता सदस्य गार्दी कोड़ा , जॉन उर्फ जोहन पुरती, नीरसो सिदू, घोनोर देवगम, गोमेया कोड़ा उर्फ टारजन, कैरा कोड़ा, कैरी कायम उर्फ गुलांची, प्रदीप सिंह मुंडा शामिल हैं। इसके अलावा 4 महिला भी शामिल है, उनमें से सावित्री गोप उर्फ मुतुरी उम्र मात्र 18 वर्ष है, वहीं अन्य सभी सदस्यों की उम्र 20-22 वर्ष के बीच है। DGP अनुराग गुप्ता ने समारोह की अध्यक्षता की और आत्मसमर्पण करने वालों का स्वागत करते हुए कहा, “झारखंड की आत्मसमर्पण नीति देश की सर्वश्रेष्ठ नीतियों में से एक है। जो नक्सली मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं, उन्हें कौशल प्रशिक्षण, रोजगार और पुनर्वास के पूर्ण अवसर प्रदान किए जाएंगे। लेकिन जो हिंसा का रास्ता अपनाएंगे, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।”पुलिस अधिकारियों के अनुसार, इन नक्सलियों ने संगठन के अंदर व्याप्त भ्रष्टाचार, आदिवासी समुदायों पर अत्याचार और हिंसा की निरर्थकता से मोहभंग होकर यह कदम उठाया है। विगत तीन वर्षों में पश्चिमी सिंहभूम जिले में नक्सल विरोधी अभियानों के दौरान सैकड़ों ऑपरेशन चलाए गए हैं, जिसमें कई नक्सली मारे गए या गिरफ्तार हुए हैं। इसी का परिणाम है कि अब नक्सली मुख्यधारा की ओर लौट रहे हैं। जिले में अब तक कुल 26 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है।
नक्सलवाद पर लगाम कसने की दिशा में कदम
झारखंड सरकार की ‘प्रत्यर्पण एवं पुनर्वास नीति’ के तहत आत्मसमर्पण करने वालों को नकद सहायता, आवास, शिक्षा और स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं। DGP गुप्ता ने बताया कि यह नीति न केवल नक्सलियों को सुधारने का माध्यम है, बल्कि समुदायों को मजबूत बनाने का भी। उन्होंने अन्य नक्सलियों से अपील की कि वे भी हथियार त्यागकर समाज की मुख्यधारा में शामिल हों, वरना पुलिस उनके गुप्त ठिकानों तक पहुंच जाएगी।पश्चिमी सिंहभूम और चाईबासा जैसे क्षेत्र लंबे समय से नक्सलवाद का गढ़ रहे हैं, जहां माओवादी संगठन विकास कार्यों में बाधा डालते रहे हैं। हाल के वर्षों में सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस के संयुक्त अभियानों से नक्सली गतिविधियां कम हुई हैं। इस आत्मसमर्पण से क्षेत्र में शांति स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ा है।
विशेषज्ञों की राय
नक्सल विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी घटनाएं नक्सल संगठनों के मनोबल को तोड़ने वाली हैं। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, “यह केवल 10 नक्सलियों का सरेंडर नहीं, बल्कि पूरे संगठन के पतन का संकेत है। सरकार की नीतियां और सुरक्षा बलों की सक्रियता ने नक्सलियों को मजबूर कर दिया है।” इसी तरह, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सराहना करते हुए कहा कि पुनर्वास नीति से न केवल नक्सली सुधरेंगे, बल्कि आदिवासी युवाओं को हिंसा के चक्र से बाहर निकालने में मदद मिलेगी।