झारखंड की लोकसभा सांसद जोबा माझी ने मंगलवार को एक अतारांकित प्रश्न में झारखंड की हो भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने संबंधी सवाल पूछा। प्रश्न संख्या 3678 में जोबा माझी ने पूछा- क्या गृह मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि-
(क) क्या सरकार का विचार झारखंड के बड़े क्षेत्र में ‘हो’ भाषा के प्रचलन को ध्यान में रखते हुए इसे संरक्षित रखने के लिए इसे भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का है; और
(ख) यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और यदि नहीं, तो इसके क्या कारण हैं?
जोबा माझी के प्रश्न पर गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने जवाब दिया-
(क) से (ख): ‘हो’ सहित, समय-समय पर संविधान की आठवीं अनुसूची में कई भाषाओं को शामिल करने की मांग उठती रही है। हालांकि, किसी भी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर विचार किए जाने हेतु कोई निश्चित मानदंड नहीं हैं। चूंकि बोलियों और भाषाओं का विकास एक गतिशील प्रक्रिया है, जो सामाजिक- सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास से प्रभावित होती है, इसलिए भाषाओं के लिए ऐसा कोई मानदंड निर्धारित करना मुश्किल है जिससे उन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जा सके।
पाहवा समिति (1996) और सीताकांत महापात्रा समिति (2003) के माध्यम से इस तरह के निश्चित मानदंड विकसित करने के पूर्वगामी प्रयास अनिर्णायक रहे हैं।
भारत सरकार आठवीं अनुसूची में अन्य भाषाओं को शामिल करने से संबन्धित भावनाओं और आवश्यकताओं के प्रति सचेत है। इस तरह के अनुरोधों पर इन भावनाओं और अन्य प्रासंगिक बातों को ध्यान में रखते हुए विचार करना होता है। जहां तक ‘हो’ जैसी भाषाओं के संरक्षण का संबंध है, केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, शिक्षा मंत्रालय आदिवासी भाषाओं सहित सभी भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने की दिशा में काम करता है। इसमें फोनेटिक रीडर्स, व्याकरण, शब्दकोश, लोक साहित्य, स्कूल और वयस्क साक्षरता प्राइमर शामिल हैं और विभिन्न भाषाओं में शिक्षा वृत्तचित्र तैयार करते हैं।
यहां यह बता दें कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हो भाषा समेत झारखंड की अन्य स्थानीय भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रयासरत हैं और उन्होंने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी इसे शामिल किया था। इतना ही नहीं। झारखंड की छठी विधानसभा के गठन के बाद हुई कैबिनेट की बैठक में भी इसका संकल्प दोहराया था। परन्तु आज लोकभा में गृह मंत्रालय द्वारा जो जवाब मिला है, वह हेमंत सरकार के लिए एक निराशाजनक संकेत है।