संताल हूल 1855-56 में लूबिया मांझी, बैरो मांझी और अर्जुन मांझी ने हजारीबाग में किया था विद्रोह ।

 

हजारीबाग, झाऱखंड

आदि अनादि काल से चंपा दिसोम वर्तमान हजारीबाग संतालों का मूल भूमि रहा है। हजारीबाग संतालों का चंपा दिसोम की राजधानी थी और आज़ भी संतालों का राजधानी माना जाता है, यही वजह है कि 1855-56 में संताल हूल ब्रिटिश हुकूमत और ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ हूल (विद्रोह) का आगाज किया गया जिसका नेतृत्व लूबिया मांझी, बैरो मांझी और अर्जुन मांझी ने किया था, जिसका संबंध संथाल परगना और भागलपुर डिवीजन से था। हजारीबाग और इसके इर्द-गिर्द हजारों संतालों के गांव थे, जिसने संथाल हूल के जरिये ब्रिटिश हुकूमत और ब्रिटिश सैनिकों को काफी नुकसान पहुंचाया। जिसके परिणाम स्वरूप हजारीबाग के संथाल हूल को ब्रिटिश सरकार और सैनिकों ने क्रूरता से दबा दिया। संतालों को मारा गया और जंगलों में खदेड़ दिया गया, जो पकड़े गये उन्हें कैद कर लिया गया। यहां तक कि महिलाओं को भी कैद कर लिया गया। हजारों हजार संथाल गांवों और कस्बों घरों को जला दिया गया । ब्रिटिश सैनिकों के बंदूकों के आगे संतालों का तीर धनुष सामना नहीं कर पायी और लड़ाई में हजारों संताल शहीद हो गए।

संथाल हूल से प्रभावित होकर एक महात्वपूर्ण क्रांति 1857 के सैनिक विद्रोह या सिपाही विद्रोह के नाम से जाना जाता है। हजारीबाग के आठवीं बटालियन ने नेटीव इंफैंट्री की दो कंपनियों से बनी रामगढ़ बटालियन ने एक वर्ष बाद 30 जुलाई के अगले दिन शाम को विद्रोह करने का फैसला लिया। यह खबर डिप्टी कमिश्नर कैप्टन सिम्सन को उसके एक नौकर से पता चला उसके बाद कैप्टन सिम्सन ने डॉ दलप्रैंट और सीतागढ़ के मि. लिबार्ट ने तुरंत इचाक की ओर चलें जाने का फैसला लिया। जहां रात होने पर एक मठ में ब्राह्मणों ने उसका सत्कार किया घोड़े दिये, उसके बाद बगोदर की तरह निकले जहां बरकट्ठा के आसपास संथाल विद्रोहियों से मुठभेड़ हुई।
विद्रोहियों को हजारीबाग से ज्यादा समर्थन नहीं मिला और रांची से भी बहुत कम। 2 अक्टूबर 1857 को मेज़र इंग्लिश ने उनपर हमला कर दिया और उन्हें हरा दिया उनके बंदूकें छीन ली गई तथा गोला बारूद पर कब्ज़ा कर लिया 150 विद्रोही मारे गए बाकी शेरघाटी की ओर भाग गए। तितर-बितर हो चुके आंदोलन को कुचल दिया गया।

1855-56 में बेरहमी से कुचले गए संतालों ने विद्रोह करने का अवसर लिया ब्रिटिश सत्ता के कमजोर होने से संताल लोग उत्साहित थे।
17 सितंबर 1857 को लिखे गए एक पत्र संख्या 50 में सिम्पसन ने रांची के कमिश्नर कैप्टन डाल्टन को बताया कि हथियारबद्ध संतालों का रामगढ़ के 10 लोगों का 76 सिखों की टुकड़ी के साथ टकराव हुआ । संतालों के नेता रूपू मांझी थे। उसके घर जला दिए गए। उन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने 100 रूपए का ईनाम रखा गया था साथ ही अर्जुन मांझी को पकड़ने के लिए भी 50 रूपए का ईनाम घोषित किया गया था। रामगढ़ राजा के कहने पर गोमिया और रामगढ़ में ब्रिटिश सैनिकों की एक एक टुकड़ी तैनात करने को कहा गया।

इस तरह हजारीबाग में संताल हूल को दबा दिया गया। हालांकि दोबारा विद्रोह को रोकने के लिए कोई विशेष सुलह या उपाय नहीं किए गए। हजारीबाग में सैन्य पुलिस के लिए संतालों को नियुक्त किया गया और इस कार्य के लिए 500 संतालों की एक टुकड़ी भर्ती की गई। इस तरह से हजारीबाग में 1855-59 तक के संताल हूल को पूरी तरह से दबा दिया गया। उसके बाद 1861 में जमीन संबंधित एक कानून लागू हुआ जिसके तहत आदिवासियों के जमीन के खरीद बिक्री के लिए कमिश्नर से अनुमति का प्रावधान जोड़ा गया। संथाल हूल के नायक सिदो- कानु मुर्मू को बचाने के लिए अर्जुन मांझी ने भागलपुर डिवीजन के कमिश्नर को संदेश भेजा था।

 

 

लेखक – सुधीर बास्की, शिक्षाविद्ध, गिरिडीह

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