दुमका(स.प.)
दिसोम मरांग बुरु संताली अरीचली आर लेगचर अखड़ा और ग्रामीणों ने संताली भाषा,ओल चिकी लिपि और शिक्षा को लेकर दुमका प्रखंड के हिजला गांव में अखड़ा के सचिव व हिजला गांव के मंझी बाबा(प्रधान) सुनिलाल हांसदा के अध्यक्षता में कुल्ही दुड़ूप(बैठक) किया गया। अखड़ा और ग्रामीणों का कहना है कि संताली भाषा सिर्फ और सिर्फ ओलचिकी लिपि से ही वैज्ञानिक रूप से सही लिखा जा सकता है, क्योकि ओल चिकी लिपि के जनक स्वंय पंडित रघुनाथ मुर्मू थे.जो स्वंय संताल आदिवासी समुदाय से थे। इसलिए इस लिपि से सभी संताली शब्दों को सटीक और वैज्ञानिक रूप से लिखा जा सकता है। इसके अलावा जितने भी अन्य लिपि है उनके जनक संताल आदिवासी नही है, जिस कारण उन लिपियों से संताली शब्दों को सटीक और वैज्ञानिक रूप से कभी भी नही लिखा जा सकता है। इसलिए ओलचिकी लिपि संताल आदिवासियों का स्वदेशी लिपि है और अन्य सभी लिपि उधार ली गई लिपियाँ हैं, जो अन्य भाषाओं के लिए विकसित हुई थीं। संताल समुदाय के लिए ओल चिकी लिपि उनकी मूल और सांस्कृतिक रूप से प्रामाणिक और वैज्ञानिक लिपि है। अखड़ा और ग्रामीणों का आगे कहना है कि झारखंड राज्य का गठन मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों के सामाजिक, सांस्कृतिक,धार्मिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए ही किया गया था। झारखंड राज्य बनने के 25 वर्षों के बाद भी आदिवासी समुदायों का संपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास अपेक्षित स्तर तक नहीं हुआ। संताल आदिवासी समुदाय झारखण्ड राज्य में आदिवासी जनसंख्या में सबसे अधिक संख्या है। उसके बाद भी संताल समुदाय का संपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास अपेक्षित स्तर तक नहीं हो पाया। उसका मुख्य कारण संताल आदिवासियों को उनके मातृभाषा संताली और ओलचिकी लिपि में शिक्षा नही मिलना है। इनके शैक्षणिक स्तर और जीवन स्तर को सुधारने के लिय यह जरुरी है कि उनके ही मातृभाषा संताली और उसके स्वंय के स्वदेशी लिपि ओल चिकी लिपि में ही सभी शिक्षण संस्थानों में पढ़ाया जाए। संताल समुदाय की सांस्कृतिक पहचान सुरक्षित रहे और नई पीढ़ी अपनी ही भाषा,लिपि और परंपराओं से जुड़ी रहे, उसके लिए जरुरी है कि इनके भाषा संताली और ओलचिकि लिपि को और बढ़ावा मिले। संताली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्ष 2003 में ही शामिल किया गया है, फिर भी इसे वास्तविक रूप से बढ़ावा देने के लिए और प्रयासों की जरूरत है। अखड़ा और ग्रामीणों का कहना है कि संताली भाषा बंगाल,उड़ीसा,असम,बिहार राज्यों के साथ साथ बांग्लादेश,नेपाल आदि देशो में भी बोला जाता है। पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में सरकार द्वारा संताली भाषा के लिए केवल ओल चिकी लिपि को ही मान्यता प्राप्त है। इन राज्यों में संताली भाषा की आधिकारिक लेखन प्रणाली के रूप में ओल चिकी का ही उपयोग किया जाता है और सरकारी दस्तावेज़, शिक्षा तथा प्रशासनिक कार्यों में इसे मान्यता दी गई है।एक लिपि ओल चिकि होने से अब संताली भाषा को विभिन्य क्षेत्रो में समझना और आसान हो गया है, क्योंकि पहले संताली भाषा उड़ीसा,बंगाली,असमी,देवनागरी आदि लिपि से लिखा जाता था। ओल चिकि लिपि पूरा दुनिया के संताल आदिवासी का एक पहचान हो गया है, जो एकता के सूत्र में लाने का काम कर रहा है। ओल चिकी लिपि से संताली भाषा को गूगल अनुवाद में जोड़ा गया है.इससे संताली भाषा और ओल चिकि को अन्तराष्ट्रीय मंच पर एक नयी पहचान मिली है. झारखण्ड में ही कुछ लोग सस्ती राजनितिक लाभ के लिय इसका विरोध कर सामाजिक समरसता को बिगाड़ने का कोशिश कर रहे है, जो बर्दाश्त नही किया जायेगा। अखड़ा और ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन,शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन,दुमका विधायक बसन्त सोरेन से मांग किया कि संताल आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में शिक्षण के सभी संस्थानों में संताली भाषा और अन्य विषय उनके मातृभाषा संताली और ओल चिकी लिपि से ही जल्द पढ़ाया जाए, सरकारी विद्यालयों/ महाविद्यालय/ विश्वविद्यालय में ओल चिकी शिक्षकों की नियुक्ति जल्द किया जाय और संताली भाषा में पाठ्य पुस्तकों का लेखन व प्रकाशन ओल चिकी लिपि में ही किया जाय.अगर सरकार दुवारा जल्द मांगो पर विचार नही किया जाता है तो मोड़े मंझी बैठक किया जायेगा। इस मौके तम्बल हांसदा,देवी सोरेन,लाल हांसदा,रुबिलाल हांसदा,सुनील सोरेन,लखीराम हांसदा,दिलीप सोरेन,छोटू किस्कु, मनोज हेम्ब्रम, जीतनी हांसदा,निरुनी मरांडी, सुजाता सोरेन,खुली हांसदा, कुलीन सोरेन,परमीला किस्कू,सरला हांसदा,पहलू सोरेन,पकलू किस्कू, फुलमुनी मुर्मू, तेरेसा हेंब्रम, स्कूटी हांसदा, जयंती टुडू ,अनूप हांसदा, अनुप्रिया टुडू, प्रियतम मुर्मू , प्रदीप सोरेन, एंथोनी किस्कू, दीपक मरांडी, सोमेल सोरेन,छुटू किस्कू में इत्यादि उपस्थित थे।