आदिवासी स्वशासन के नाम पर चालू माझी-परगना आदि व्यवस्था में अविलंब जनतांत्रिक और संवैधानिक सुधार को लेकर डीसी को सौंपा ज्ञापन

सरायकेला-खरसांवा

मंगलवार 12 अगस्त को आदिवासी सेंगेल अभियान के प्रतिनिधिमंडल ने सरायकेला-खरसांवा के उपायुक्त को ज्ञापने देकर मांग की है कि आदिवासी समाज में प्रचलित स्वशासन व्यवस्था को खत् कर लोकतांत्रिक पद्धति अपनायी जाये। सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय संयोजक सोनाराम सोरेन के नेतृत्व में मिले प्रतिनिधि ने अपने ज्ञापन में कहा है कि  खासकर संताल समाज में चालू व्यवस्था स्वशासन की जगह स्वशोषण का प्रतीक बन चुका है। यह अब गुंडागर्दी और मनमानी का तानाशाही रूप ले चुका है। माझी-परगना व्यवस्था संविधान और जनतंत्र विरोधी है. यह व्यवस्था वंशवादी है और अधिकांश माझी-परगना के अगुआ अनपढ़, पियक्कड़ और मूर्ख हैं। देश दुनिया से बेखबर है। गांव के सभी लोगों द्वारा नहीं चुने जाते हैं। जनतांत्रिक व्यवस्था की अनुपस्थिति में गांव में उपलब्ध पढ़े-लिखे लोगों, महिलाओं को शामिल होने का अवसर नहीं होता है। उनके द्वारा समाजिक बहिष्कार की धमकी से बाकी लोग गुलामी का जीवन जीने को मजबूर है।

अतः विकास और सबकी बराबरी के लिए माझी-परगना व्यवस्था का जनतांत्रिकरण अविलंब जरूरी है।

1. माझी-परगना व्यवस्था के अगुआ संविधान, कानून और मानव अधिकार नहीं मानते हैं। इस व्यवस्था के वाहक अंधविश्वास, नशापान, जुर्माना, सामाजिक बहिष्कार, डायन प्रथा, वोट खरीद-बिक्री, महिला विरोधी मानसिकता, ईर्ष्या-द्वेष आदि को खत्म करने के बजाय प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष इसको बढ़ावा देते हैं। इससे मर्यादा के साथ जीने और समानता के संवैधानिक अधिकारों का हनन जारी है. किसी को नाहक जुर्माना लगाना, सामाजिक बहिष्कार करना, डायन के नाम पर प्रताड़ना और हत्या करना आदि सामाजिक मामला नहीं बल्कि अपराधिक और गैर-कानूनी कार्रवाई है। अतः प्रत्येक आदिवासी गांव के नागरिकों को इस अपराध और हिंसा से अविलंब मुक्त करना जरूरी है।

2. संविधान, कानून और मानव अधिकारों की रक्षा करने का महती दायित्व कार्यपालिका का है। अतः जिला पुलिस-प्रशासन से इसकी जांच और अविलंब रोक-थाम जरूरी है. आदिवासी सेंगेल अभियान माझी-परगना व्यवस्था में जनतांत्रिक और संवैधानिक सुधार की मांग करता है। इसे आदिवासियों का सामाजिक मामला बताकर इससे पल्ला झाड़ना भारतीय नागरिकों के साथ अपराध जैसा है।

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