मारांग बुरू बचाओ संघर्ष मोर्चा के केंद्रीय समिति का गठन, फागू बेसरा बने अध्यक्ष, हीरालाल माँझी को महासचिव बनाए गए।

मधुबन, पीरटांड़, गिरिडीह

मारांङ बुरु बचाओं संघर्ष मोर्चा की दो दिवसीय बैठक सम्पन्न हो गया। इस बैठक में मारांङ बुरु बचाओं संघर्ष मोर्चा की प्रस्तावना और समिति का विस्तारीकरण के साथ-साथ आदिवासी समाज के लोगों ने मारांङ बुरु को बचाने को लेकर विशेष चर्चा किया। जिसमें यह निर्णय लिया गया कि मारांङ बुरु आदिवासी संथाल समाज के लोगो का (इष्ट देवता) माराङ बुरु (पारसनाथ पर्वत) ईश्वर के रुप में आदि- अनादिकाल युगो-युगो से पुजते आ रहे है। मारांङ बुरु एवं पहाड़ कि चोटि में पवित्र जुग जाहेरथान (सरना स्थल) और पहाड़ कि तलहटी में दिशोम मांझी थान अवस्थित है, जिसे बचाने हेतु देश के समस्त आदिवासी समाज को एक जुट होकर इस पवित्र स्थान को बचाने के लिए संघर्ष करना होगा। मारांङ बुरु सम्पूर्ण स्थांल समाज के लिए सबसे बड़ा एवं महत्वपूर्ण धार्मिक तीर्थ स्थल है। मारांङ बुरु बचाओं संघर्ष मोर्चा मारांङ बुरु में संथालों की आस्था को संरक्षित करने के लिए हमेशा संघर्षरत रहेगा एवं सभी कानूनी लड़ाइयाँ सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेगी । मरांग बुरू बचाओ संघर्ष मोर्चा की कोर कमेटी की बैठक मरांग बुरू फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष रामलाल मुर्मू के अध्यक्षता में सम्पन्न हुई बैठक का संचालन बिष्णु किस्कु ने की। बैठक में मारांग बुरू बचाओ संघर्ष मोर्चा केंद्रीय समिति की गठन की गई है। संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष फागू बेसरा एवं महासचिव हीरालाल माँझी को बनाए गए हैं । उपाध्यक्ष रामलाल मुर्मू, उड़ीसा के पूर्व सांसद रामचंद्र हंसदा, जसाई मार्डी टीएसी सदस्य और कोषाध्यक्ष सोमाय टुडू को बनाया गया है। सचिव बिष्णु किस्कू, महावीर मुर्मू सोनाराम हेम्ब्रोम, एतो वास्के, रमेश टुडू, मुख्य प्रवक्ता दुर्गा चरण मुर्मू बनाए गए हैं। मीडिया प्रबंधन एवं जन सम्पर्क प्रभारी के रूप में सुरेंद्र सोरेन को ज़िम्मेवारी दी गई है। कुल 51 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है। समिति के लोगों ने मरांगबुरू में बोंगा पूजा कर अपने सामाजिक, पारंपरिक और धार्मिक रक्षा का प्रण लिया।

 

देशव्यापी आंदोलन की रूपरेखा बनी।

समिति ने अपनी बैठक में निर्णय लिया है कि पारसनाथ पर्वत में अतिक्रमण और आदिवासियों की अधिकार को लेकर संघर्ष करेगी। साथ ही मारांग बुरू पारसनाथ पर्वत को बचाने और पहाड़ पर आदिवासियों की प्रथागत अधिकार धार्मिक सांस्कृतिक वैधानिक अधिकार को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर आन्दोलन खड़ा करेगी। समिति ने CNT Act व सरकारी भूमि और वन भूमि पर अतिक्रमण कर अवैध ढंग से मठ मंदिर और कंक्रीटों से पर्यावरण को नुक़सान करते हुए वृक्षों की कटाई कर भवनों का निर्माण किया गया है। उसको हटाने को लेकर संघर्ष तेज किया जाएगा।  दो महात्वपूर्ण धार्मिक सांस्कृतिक महोत्सव दिशोम बाहा परब बोंगा बुरू महोत्सव और धार्मिक शिकार सेन्दरा और लॉ-बीर बैसी मारांग बुरू पारसनाथ पर्वत में धूमधाम से मनाया जाएगा।

बैठक में आठ प्रस्ताव पारित किये गये। 

1) पारसनाथ पहाड़ का प्राचीन नाम मरांग बुरू है। मरांग बुरु को संथाल आदिवासी ईश्वर के रूप में बोंगा-बुरू पूजा अर्चना आदिकाल से करते आ रहें हैं।
पारसनाथ पहाड़ पर संथाल आदिवासियों को प्रथागत अधिकार प्राप्त है। छोटानगपुर करतकारी अधिनियम की धारा 81 भूमि अधिकार अभिलेख में आदिवासियों के प्रथागत अधिकार को मान्यता दी गई है। कमिश्नरी कोर्ट हजारीबाग एवं माननीय पटना हाई कोर्ट एवं प्रीवी कौंसील कोर्ट लंदन ने हम संथालों के प्रथागत अधिकार को मान्यता दिया है।
पारसनाथ पहाड़ के चोटी में “जुग जाहेर थान” (सरना स्थल) पवित्र पूजा स्थल है। पारसनाथ पहाड़ के तलहटी में दिशोम माँझी थान है।
फागुन माह तिथि तृतीय शुल्क पक्ष में बड़ी धूम-धाम से मरांग बुरू जुग जाहेर दिशोम बाहा बोंगा बाहा परब महोत्सव प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। झारखण्ड सरकार ने बाहा परब महोत्सव को वर्ष 2025 से राजकीय महोत्सव घोषित किया है। पूर्णिमा में धार्मिक शिकार सेन्दरा एवं लॉ-बीर वैसी दोरबार का आयोजन किया जाता है। जिसमें बीमार कमजोर वन्यजीवों का शिकार सेन्दरा किया जाता है।
लॉ-बीर बैसी में मांझी परगना आपसी सामाजिक विवाद का समाधान किया जाता है।
भारत की संविधान के अनुच्छेद 13, 25, 26, 366 (25) एवं 244 पाँचवीं अनुसूचि में हम संथाल आदिवासियों के धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, पराम्परिक रूढ़ीवादी व्यवस्था प्रथागत अधिकार संरक्षित किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय का जजमेंट केश संख्या 180/11 एवं केश न० I.A No (S) 41723/2022 रीट याचिका केश संख्या 202/1995 में आदिवासियों के धार्मिक पवित्र स्थल संरक्षित करने का आदेश पारित किया है।
अतः झारखण्ड सरकार से माँग है कि मरांग बुरू (पारसनाथ पहाड़) को संथाल आदिवासियों का पवित्र धार्मिक स्थल घोषित कर संरक्षित किया जाए।

2) भारत सरकार वन, पर्यावरण जलवायु परिवर्तन मंत्रालय नई दिल्ली संशोधन मेमोरडंम फाइल न० F.No 11-584/2014-WL, दिनांक 05.01.2023 के अधिसूचना के तहत मरांग बुरू (पारसनाथ पहाड़) को एक तरफा जैन समुदाय का सम्मेद शिखर धार्मिक स्थल घोषित किया जाए।
झारखण्ड सरकार पर्यटन, कला संस्कृति, खेल-कूद एवं युवा कार्य विभाग के अधिसूचना कार्यालय ज्ञांपन संख्या का०ज्ञ०सं०-पर्य०/यो0-14/2010-1391 राँची, दिनांक 22.10.2018 के तहत एक तरफा जैन समुदाय के पक्ष में मरांग बुरू पारसनाथ सम्मेद शिखर जी पर्वत सदियों से जैन धर्मावलम्बियों का विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल घोषित किया गया है। आदिवासियों के पवित्र धार्मिक स्थल मरांग बुरू को गौण कर जैनियों के नाम को एक तरफा घोषित करना भारत की संविधान का उलंग्धन है।
अतः भारत सरकार एवं झारखण्ड़ सरकार से माँग है कि जैन समुदाय के पक्ष में एक तरफा जारी अधिसूचना संशोधन मेमोरडंम फाइल न० F.No 11-584/2014-WL, दिनांक 05.01.2023 एवं राज्य सरकार पर्यटन, कला संस्कृति, खेल-कूद एवं युवा कार्य विभाग के अधिसूचना कार्यालय ज्ञांपन संख्या का०ज्ञ०सं०-पर्य०/यो0-14/2010-1391 राँची, दिनांक 22.10.2018 को रद्द किया जाए।

3) मरांग बुरू (पारसनाथ पहाड़) संथाल जनजातियों का पवित्र धार्मिक स्थल है। भारत की संविधान एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से संरक्षित है।
अतः झारखण्ड सरकार से माँग है कि अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 की धारा 3 (1) के तहत सामूहिक वन पट्टा, संरक्षण, प्रबंधन, निगरानी एवं अनुश्रवण करने की जिम्मेवारी स्थानीय आदिवासियों को ग्राम सभा को दिया जाए।

4) मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) में जैन समुदाय के द्वारा राजस्व ग्राम पारसनाथ एवं मधुबन में सी.एन.टी. एक्ट भूमि, सरकारी गैरमजुरूआ भूमि एवं वन भूमि पर अवैध ढंग से अतिक्रमण कर मठ-मंदिर, धर्मशाला वृक्षों को काट कर कंक्रीटों का भवन बनाया गया है।
अत्तः झारखण्ड सरकार से माँग है कि इसकी जाँच कर अवैध ढंग से की गई अतिक्रमण कब्जा मुक्त करते हुए अतिक्रमणकारी जैन समुदाय पर कानूनी कार्रवाई किया जाए।

5) भूमि एवं धार्मिक स्थल संविधान के अनुसार राज्यों का विषय है। झारखण्ड सरकार से मांग है कि आदिवासियों के धार्मिक स्थल मरांग बुरू लुगू बुरू. अतु/ग्राम, जाहेर थान (सरना), माँझी थान, मसना, हड़गडी आदि धार्मिक स्थल की रक्षा के लिए आदिवासी धार्मिक स्थल संरक्षण अधिनियम बनाया जाए।

6) अनुसूचित जनजाति और अन्य पराम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 सम्पूर्ण देश में लागू है। परन्तु बिना ग्राम सभा के सहमति से भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधिसूचना संख्या 2795 (अ) दिनांक 02 अगस्त 2019 के तहत मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) को पारिस्थितिकी संवेदी जोन (Eco Sensitive Zone) घोषित किया गया है। जो असंविधानिक है।
केन्द्र एवं राज्य सरकार से मांग है कि इसे रद्द करते हुए मरांग बुरु (पारसनाथ पर्वत) पर संथाल आदिवासियों के प्रथागत अधिकार (Customary right) को संरक्षित किया जाए।

7) मराग बुरू युग जाहेर, बाहा बोंगा पूजा महोत्सव फागुन शुल्क पक्ष तृतीय तिथि को राज्यकीय महोत्सव घोषित किया जाए।

8) स्व० अजय टुडू पूर्व मरांग बुरू संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष को वर्ष 2008 में एक साजिश के तहत उग्रवादी संगठनों के नाम पर हत्या कर दिया गया। जिसका केश न0 41/2008 है। चूंकि अजय टुडू संथाल आदिवासियों के Customary right प्रथागत अधिकार को लेकर आवाज बुलन्द कर रहा था। आवाज को दबाने के लिए उनकी हत्या की गई है। यह हत्या काण्ड जैन समुदाय के द्वारा एक साजिश कर हत्या की आशंका है।
अतः इस हत्या कांड का सी०बी०आई० से जाँच की माँग किया जाता है। हत्या कांड की जाँच करते हुए स्व० अजय टुडू को न्याय दिया जाए एवं दोषियों पर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए।

 

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