भारत के कानून के लिए अक्सर ‘अंधा कानून’ मुहावरे के रूप में प्रयोग होता रहा है। ‘अंधा कानून’ को लेकर देश में कई फिल्में भी बन चुकी हैं। लेकिन अब ‘अंधा कानून’ इतिहास के पन्नों में दफन हो गया है। अदालतों में न्याय की देवी की आंख पर बंधी पट्टी जो आप बरसों से देखते आ रहे हैं, अब वह नहीं दिखायी देगी। क्योंकि उसके आंख पर बंधी पट्टी अब हट चुकी है।
जी हां, बुधवार को ऐसा ही हुआ है। सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नयी मूर्ति का अनावरण हुआ। इस मूर्ति की आंखों को कोई काली पट्टी नहीं है। न्याय की देवी के हाथ में तलवार नहीं भारत का संविधान नजर आ गया है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड के आदेश पर अब अदालतों में न्याय की देवी की यही मूर्ति दिखायी देगी।
अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही परिपाटी को बदले जाने की चारों ओर स्वागत किया जा रहा है। मुख्य न्यायाधीश ने इन बदलावों के जरिए संविधान में समाहित समानता के अधिकार को जमीनी स्तर पर लागू कराने का प्रयास किया है। इसलिए इन बदलावों का चौतरफा स्वागत किया जा रहा है।
न्याय की देवी का क्या है इतिहास?
न्याय की देवी, जो अदालतों में अब तक दिखती थी, असल में यूनान की देवी हैं। उनका नाम जस्टिया है और उन्हीं के नाम से ‘जस्टिस’ शब्द आया है। उनकी आंखों पर बंधी पट्टी दिखाती है कि न्याय हमेशा निष्पक्ष होना चाहिए। 17वीं शताब्दी में एक अंग्रेज अफसर पहली बार इस मूर्ति को भारत लाए थे। यह अफसर एक न्यायालय अधिकारी थे। 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश राज के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल होने लगा। भारत की आजादी के बाद भी हमने इस प्रतीक को अपनाया गया।