अगले पांच सालों में बने झारखंड आन्दोलन के सपनों का अबुआ राज-अभियान ने जारी किया जन घोषणा पत्र

मंगलवार को लोकतंत्र बचाओ अभियान (अबुआ झारखंड, अबुआ राज) ने प्रेस क्लब, रांची में प्रेस वार्ता कर विधान सभा चुनाव के लिए जन घोषणा पत्र जारी किया. अभियान ने सांप्रदायिक सौहार्द्य और संवैधानिक मूल्यों में विश्वास करने वाले राजनैतिक दलों से मांग किया कि वे अपने घोषणा पत्र में अभियान द्वारा उठाये गए मांगों को जोड़ें. यह भी मांग किया गया कि वे मज़बूत ज़मीनी गठबंधन सुनिश्चित करें एवं मिलकर एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम जारी करें. संक्षिप्त व विस्तृत मांग पत्र संलग्न है. प्रेस वार्ता के बाद अभियान प्रतिनिधिमंडल झामुमो व कांग्रेस के नेतृत्व से मिलकर मांग पत्र सौंपा।

प्रेस वार्ता में पहले हेमंत सोरेन गठबंधन सरकार के पिछले पांच साल के शासन का आंकलन दिया गया. गठबंधन सरकार ने जन अपेक्षा अनुरूप कई काम किये हैं जैसे सामाजिक सुरक्षा पेंशन के कवरेज में व्यापक बढ़ौतरी, मईयां सम्मान योजना, कोविड लॉकडाउन व उसके बाद प्रवासी मजदूरों को सहयोग, कृषि ऋण माफ़ी, पत्थलगड़ी आन्दोलन व CNT-SPT आन्दोलन सम्बंधित केसों की वापसी, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज परियोजना के अवधि विस्तार पर रोक आदि. साथ ही, राज्य की अपेक्षा अनुसार 1932 खतियान आधारित डोमिसायिल नीति, पिछड़ों के लिए 27% आरक्षण व सरना धर्म कोड की अनुशंसा को विधान सभा से पारित किया.

लेकिन गठबंधन दलों द्वारा किये गए अनेक वादे पांच साल बाद भी लंबित हैं. उदहारण के लिय, भूमि बैंक व भूमि अधिग्रहण कानून संशोधन रद्द नहीं किया गया, ईचा-खरकई परियोजना रद्द नहीं हुआ, पेसा नियमावली नहीं बना, मॉब लिंचिंग कानून नहीं बना, विलय किये गए विद्यालय खोले नहीं गए आदि. वन अधिकार के अनेक दावों पर कार्यवाई नहीं हुई. इस दौरान मनरेगा समेत अन्य सरकारी योजनाओं में ज़मीनी भ्रष्टाचार पर भी अंकुश नहीं लगा. साथ ही, सरकार की कई घोषणाएं कागज़ तक ही सीमित रहे, जैसे बच्चों को आंगनवाड़ी व मध्याह्न भोजन में अंडा देना. हालांकि इन पांच सालों में मोदी सरकार और भाजपा द्वारा लगातार सरकार को गिराने की कोशिश की गयी. अनेक नीतियों को केंद्र सरकार ने भी रोक के रखा.

इस परिस्थिति का आंकलन करते हुए लोकतंत्र बचाओ अभियान ने 2024 विधान सभा के लिए जन घोषणा पत्र जारी किया. अभियान का मानना है कि जिस जल, जंगल, ज़मीन, अस्तित्व, आदिवासी स्वायत्तता, पहचान व शोषण मुक्ति के लिए राज्य बना था, उन मुद्दों पर सरकार बनने के पहले 6 महीने में कार्यवाई होनी चाहिए. भूमि अधिग्रहण कानून (झारखंड) संशोधन 2017 व लैंड बैंक नीति रद्द हो. ऐसे सभी परियोजनाओं को रद्द किया जाए जो ग्राम सभा की सहमति के बिना एवं भूमि कानून का उल्लंघन कर स्थापित किये जा रहे हैं. विस्थापन एवं पुनर्वास आयोग का गठन हो एवं भूमिहीनों, दलितों और गरीब किसानों को जमीन दिया जाए. सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय अनुसार राज्य सरकार तुरंत खनन पर राज्य कर लगाये एवं उसका कम-से-कम आधा हिस्सा ग्राम सभा को दे. पेसा नियमावली बने व आदिवासी सघन क्षेत्रों जैसे कोल्हान, दामिनी कोह में छटी अनुसूची अनुरूप व्यवस्था लागू हो. सरकार बनने के 3 महीने के अन्दर सभी लंबित निजी व सामुदायिक वन पट्टों का वितरण हो.

सरकार के एक साल पुराने आंकड़े अनुसार राज्य में लगभग 15000 विचाराधीन कैदी हैं जिसमें अधिकांश आदिवासी, दलित, पिछड़े व मुसलमान हैं. अनेक मामले फ़र्ज़ी हैं. लंबे समय से जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की तत्काल रिहाई की जाए. फर्जी मामलों में फंसे आदिवासी-मूलवासियों व वंचितों के मामलों को बंद करने के लिए उच्च स्तरीय न्यायिक जांच का गठन हो.

यह दुःख की बात है कि पिछले पांच साल रघुवर दास सरकार के झारखंड-विरोधी स्थानीय नीति अनुसार ही नियुक्ति होती रही. अगली सरकार 3 महीने में जन अपेक्षा अनुसार खतियान आधारित (भूमिहीनों के लिए विशेष व्यवस्था सहित) स्थानीय नीति लागू करे. साथ ही, हर स्तर की निजी और सरकारी नौकरियों में नेतृत्व और निर्णय पदों पर स्थानीय लोगों की अधिकांश भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाए. पांचवी अनुसूची क्षेत्र के थानों और स्थानीय प्रशासन के निर्णायक पदों पर स्थानीय लोगों विशेषकर आदिवासियों को प्राथमिकता दी जाए. राज्य के लाखो भूमिहीन दलित व विस्थापित लोग जाति प्रमाण पत्र न बनने के कारण शिक्षा, रोज़गार व अन्य अधिकारों से वंचित हैं. इनके जाति/आवासीय प्रमाण पत्र बनाने की प्रक्रिया सरल की जाए और कैंप आयोजित कर प्रमाण पत्र बांटा जाए.

राज्य में विभिन्न सांप्रदायिक संगठनों व पार्टियों द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठ, सरना-ईसाई, हिंदू-मुसलमान की राजनीति कर झारखंडी समाज के तानाबाना को ख़तम किया जा रहा है. इसे रोकना अगली सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए. बराबरी और सांप्रदायिक सौहार्द्य स्थापित करने की पहली शुरुआत थाने, पुलिस कैंप व सरकारी कार्यालय में किसी भी धर्म विशेष पूजा स्थल के बनने पर रोक से हो सकती है. साथ ही, किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में सार्वजानिक स्थलों व सरकारी कार्यालयों में लगाये गए धार्मिक झंडों व प्रतीकों को कार्यक्रम ख़तम होने के 48 घंटो के अन्दर हटाया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

अगली सरकार की प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए राज्य की लचर सार्वजानिक शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक करना. इसके लिए प्राथमिक विद्यालय से लेकर कॉलेज तक रिक्त पदों को भरा जाए और नियमित गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई सुनिश्चित हो. इसी प्रकार उपस्वास्थ्य केंद्र से सदर अस्पताल तक सभी रिक्तियों को भरा जाए एवं दावा, जांच आदि की व्यवस्था सुनिश्चित हो. केवल ठेकेदारी आधारित भवन निर्माण तक सीमित न रहे सरकार.

राज्य में व्यापक पलायन और बेरोज़गारी को ख़तम करने के लिए शहरी रोज़गार गारंटी कानून बने एवं मनरेगा में 800 रु दैनिक मज़दूरी दर किया जाए. साथ ही, वर्तमान सरकार में शुरू किये गए सामाजिक सुरक्षा के पहल को आगे बढ़ाते हुए सामाजिक पेंशन की राशी 3000 रु हो एवं सभी गर्भवती और धात्री महिलाओं को तमिल नाडु के तर्ज पर बिना किसी शर्त 20000 रु. का मातृत्व लाभ मिले. साथ ही, राज्य में व्यापक कुपोषण को ख़तम करने के लिए सरकार बनने के तीन महीने के अन्दर आंगनवाड़ियों और विद्यालयों के मध्याह्न भोजन में सभी बच्चों को प्रति दिन अंडा दिया जाना सुनिश्चित हो एवं मध्याह्न भोजन में केंद्रीकृत किचन की व्यवस्था समाप्त हो.

अगली सरकार की प्राथमिकता ज़मीनी भ्रष्टाचार ख़तम करना भी होना चाहिए. इसके लिए ठेकेदारी व्यवस्था पर तुरंत अंकुश लगे एवं सक्रिय विकेंद्रित शिकायत निवारण प्रणाली की स्थापना की जाए. सभी आयोगों – महिला आयोग, मानव अधिकार आयोग, सूचना आयुक्त आदि – में नियुक्ति कर सक्रिय किया जाए.

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