कौन हैं वो तीन झारखंडी आदिवासी, जिनकी भूमिका संविधान बनाने में रही थी।

 

 

रांची

आज भारतीय संविधान की 75 वर्ष पूरे हो गये। 26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान राष्ट्र को समर्पित किया गया, जिसे संविधान सभा के प्रारूप समिति को तैयार करने में 2 वर्ष 11 महिने 18 दिन लगे थे। आज ही दिन प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था, लेकिन क्या आप जानते हैं संविधान को तैयार करने में तीन आदिवासियों की भी अहम् भूमिका थी। इनमें सबसे बड़ा नाम मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा का था। संविधान सभा के प्रारूप समिति में उनके साथ देवेन्द्र नाथ सामंत और बोनीफास लकड़ा भी शामिल थे। 300 सदस्यों वाली इस प्रारूप समिति में मरांग गोमके ने आदिवासी को अधिकार दिलाने में बड़ी अहम भूमिका निभायी और इसकी जोरदार वकालत भी की।

जयपाल सिंह मुंडा: मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा रांची के टकरा के थे और आदिवासी महासभा से जुड़े थे। वे आदिवासियों के हक के लिए लगातार मुखर रहे।  संविधान सभा में उन्होंने कहा था कि पिछले 6000 साल से अगर इस देश में किसी का शोषण हुआ है, तो वे आदिवासी हैं। जब भारत के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हो रहा है, तो इन्हें भी अवसरों की समानता मिलनी चाहिए।

बोनीफास लकड़ा: श्री लकड़ा लोहरदगा के डोबा गांव के थे। वे उरांव जनजाति से थे और पेशे से वकील थे। उन्होंने संविधान सभा में छोटानागपुर सबडिविजन के रांची, हजारीबाग, पलामू, मानभूम व सिंहभूम जिलों को ऑटोनॉमस इलाका या सब प्रोविंस बनाने की मांग की थी। आदिवासियों के विकास के लिए ट्राइबल मिनिस्टर बनाने की मांग रखी थी। संविधान के लागू होते ही यथाशीघ्र ट्राइब्स एडवाइजरी काउंसिल के गठन की मांग भी इन्होंने ही की थी।

पद्मश्री देवेंद्र नाथ सामंत: ये पश्चिमी सिंहभूम के दोपाई गांव के थे और मुंडा जनजाति के थे। संविधान सभा में इन्होंने आदिवासी हितों की बात मजबूती से रखी।

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