बेटी बचाओ या वोट बटोरने का खेल? झारखंड चुनाव में भाजपा की भावनात्मक राजनीति का पर्दाफाश

रांची,

झारखंड चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की टीम द्वारा “बेटी बचाओ” नारे का जोर-शोर से इस्तेमाल किया जा रहा है। यह नारा सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन इसके पीछे छिपी रणनीति को समझना जरूरी है। भाजपा इस नारे का इस्तेमाल न केवल भावनात्मक मुद्दे उठाने के लिए कर रही है, बल्कि इसे एक मनोवैज्ञानिक हथियार के रूप में भी प्रयोग कर रही है, जिससे मतदाताओं की भावनाओं को भड़काया जा सके।

भारतीय समाज में “बेटी,” “बहू,” और “लड़की” जैसे शब्द सिर्फ रिश्ते नहीं हैं, बल्कि परिवार और समाज की इज़्ज़त और सम्मान का प्रतीक माने जाते हैं। भाजपा इस सांस्कृतिक संवेदनशीलता का फायदा उठाकर मतदाताओं में डर और आक्रोश पैदा करने का प्रयास कर रही है। यह नारा लोगों को यह महसूस कराता है कि उनकी बेटियों और बहुओं को खतरा है और भाजपा ही एकमात्र पार्टी है जो उनकी सुरक्षा कर सकती है।

“बेटी बचाओ” नारे का इस्तेमाल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ाने के लिए भी किया जा रहा है। भाजपा की रणनीति है कि वे इसे एक ऐसा मुद्दा बनाएं, जिससे हिन्दू मतदाता यह महसूस करें कि उनकी संस्कृति और परंपराएं खतरे में हैं। यह नारा समाज में “हम बनाम वे” का माहौल बनाता है, जिससे धार्मिक और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ता है।

असली मुद्दों से भटकाने की कोशिश

इस नारे का एक और उद्देश्य है झारखंड के असली मुद्दों से ध्यान भटकाना। राज्य में बेरोजगारी, आदिवासी अधिकार, भूमि अधिग्रहण, और विकास की समस्याएं प्रमुख मुद्दे हैं, लेकिन भाजपा “बेटी बचाओ” जैसे भावनात्मक नारों का इस्तेमाल कर इन मुद्दों को पीछे धकेलने की कोशिश कर रही है।

सबसे बड़ी विडंबना: प्रचार में 78% बजट खर्च

इस नारे की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” योजना के तहत भाजपा सरकार ने इसके कुल बजट का 78% हिस्सा सिर्फ प्रचार और विज्ञापन पर खर्च किया। यह दर्शाता है कि सरकार की प्राथमिकता वास्तविक सुधार से ज्यादा प्रचार पर थी। जहां योजना का असल मकसद बेटियों की शिक्षा और सुरक्षा होनी चाहिए थी, वहीं सरकार ने इसे केवल एक प्रचार अभियान बनाकर छोड़ दिया।

“बेटी बचाओ” नारा केवल एक सामाजिक अभियान नहीं, बल्कि भाजपा की चुनावी राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। यह नारा झारखंड चुनाव में भावनात्मक और सांस्कृतिक मुद्दों का सहारा लेकर मतदाताओं को भटकाने की कोशिश है। जबकि झारखंड के लोग रोजगार, शिक्षा, और विकास की उम्मीद कर रहे हैं, भाजपा इस नारे का इस्तेमाल कर वोट बटोरने की राजनीति कर रही है। मतदाताओं को इस भावनात्मक खेल को पहचानना होगा और असली मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा

Arvinder Singh Deol ‘Butter Deol’

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