संथाल परगना के बांग्ला-भाषी मुसलमान भारतीय हैं और न कि बांग्लादेशी घुसपैठिये – सामाजिक संगठन का दावा।

 

रांची, 

झारखंड जनाधिकार महासभा व लोकतंत्र बचाओ अभियान के एक प्रतिनिधिमंडल ने दावा किया है कि संताल परगना में एक भी बांग्लादेशी घुसपैठिये नहीं है। सामाजिक संगठन की ओर से इस मामले की सच्चाई जानने के लिए एक जांच दल बनाया गया था, जिसने पाकुड़ व साहेबगंज जिलों में जाकर इस तथ्य की तहकीकात की। जांच दल का दावा है कि भाजपा के दुष्प्रचार कि संथाल परगना में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए आ रहे हैं जोआदिवासियों की ज़मीन हथिया रहे है, आदीवासी महिलाओंसे शादी कर रहे हैं और आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है इत्यादी राजनीति से प्रेरित है। संगठन का दावा है कि क्षेत्र में हाल की कई हिंसा की घटनाओं को जोड़ते हुए इन दावों पर सामाजिक व राजनैतिक माहौल बनाया जा रहा है। टीम ने हालिया घटनाओं की जांच रिपोर्ट में बताया है कि गायबथान गाँव में एक आदिवासी परिवार और मुसलमान परिवार में लगभग 30 सालों से एक ज़मीन पर विवाद चल रहा था। इसी विवाद में मुसलमान परिवार ने आदिवासी की ज़मीन को जबरन कब्ज़ा करने की कोशिश की जिसके बाद 18 जुलाई को दोनों पक्षों के बीच मारपीट हुई।इसके विरुद्ध केकेएम कॉलेज के आदिवासी छात्र संघ के छात्र 27 जुलाई को विरोध प्रदर्शन किये। इसके एक रात पहले पुलिस ने कॉलेज की हॉस्टल में छात्रों की व्यापक पिटाई की। तारानगर-इलामी में सोशल मीडिया पर एक हिंदू लड़की की फ़ोटो तथाकथित शेयर करने के लिए हिंदू परिवारों ने एक मुसलमान युवा और उसकी मां को पीटा। इसके बाद मुसलमान महिला के मृत्यु की अफ़वाह फैलने के बाद मुसलमानों ने बड़ी संख्या में हिंदू टोले में तोड़-फोड़ मारपीट की। गोपीनाथपुर में बकरीद में क़ुरबानी के विवाद में संटे मुर्शिदाबाद के गाँव के मुसलमानों और गोपीनाथपुर के हिन्दुओं व पुलिस के बीच हिंसा हुई।

भाजपा के राज्य व राष्ट्रीय-स्तरीय नेता लगातार यह बोल रहे हैं कि बंगलादेशी मुसलमान घुसपैठिये इन घटनाओं के लिए जिम्मेवार हैं। लेकिन तथ्यान्वेंशन के दौरान दल ने यह पाया कि जो भी घटना हुई है, वहीं के रहने वाले समुदायों व स्थानीय लोगों के बीच हुई है। इन सभी गावों के किसी भी ग्रामीण – आदिवासी, हिंदू या मुसलमान –ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के बसने की बात नहीं की। यहां तक कि तारानगर-इलामी में रहने वाले भाजपा के मंडल अध्यक्ष भी बोले कि उनके क्षेत्र में सभी मुसलमान वहीं के निवासी है। इसी गाँव के मामले को निशिकांत दुबे ने बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा हिंसा का मामला बनाकर उछाला था। दल ने कई गावों का दौरा किया एवं सभी गावों में ग्रामीणों, शहर के लोगों, छात्रों, जन प्रतिनिधियों आदि से पूछा कि किसी को आजतक एक भी बांग्लादेशी घुसपैठी की जानकारी है या नहीं। सबने बोला कि नहीं है।

शेर्षाबादिया मुस्लिम है बांग्लादेशी नहीं 

जांच दल का मानना है कि वर्तमान में पाकुड़ व साहेबगंज में रहने वाले मुसलमान समुदाय का एक बड़ा हिस्सा शेर्षाबादिया है जो दशकों से वहां बसे हैं। इसके अलावा झारखंड में बसे व पड़ोसी राज्यों से आये पसमांदा व अन्य समुदाय हैं। इनमें से अनेक जमाबंदी रैयत हैं और अनेक पिछले कुछ दशक में आसपास के ज़िला/राज्य से आकर बसे हैं। ऐतिहासिक रूप से शेर्षाबादिया मुसलमान समुदाय मुग़ल काल से गंगा के किनारे (राजमहल से वर्तमान बांग्लादेश के राजशाही ज़िला तक) बसे रहे हैं। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि जितने भी जगह के मामलों को भाजपा ने उठाया है, अधिकांश गावों में सांप्रदायिक हिंसा का कोई इतिहास नहीं है।

पलायन और पोषण है घटती जनसंख्या का कारण

कुल जनसँख्या में आदिवासियों का घटता अनुपात गंभीर विषय है और इसके मूल कारणों को समझने की ज़रूरत है। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि आदिवासियों के अनुपात में व्यापक गिरावट 1951 से 1991 के बीच हुई और अभी भी जारी है। इसके तीन प्रमुख कारण हैं: 1) दशकों से आदिवासियों की जनसंख्या वृद्धि दर अपर्याप्त पोषण, अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था, आर्थिक तंगी  के कारण गैर-आदिवासी समूहों से कम है, 2) संथाल परगना क्षेत्र में झारखंड, बंगाल व बिहार से मुसलमान और हिंदू आकर बसते गए और आदिवासियों से ज़मीन खरीदते गए, 3) संथाल परगना समेत पूरे राज्य के आदिवासी दशकों से लाखों की संख्या में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं जिसका सीधा असर उनकी जनसँख्या वृद्धि दर पर पड़ता है।

जांच दल में झारखंड जनाधिकार महासभा और लोकतंत्र बचाओ अभियान के अजय एक्का, अफजल अनीस, दिनेश मुर्मू, एलिना होरो, एमेलिया हांसदा, फौजान आलम, मेरी हांसदा, मुजफ्फर हुसैन, नंदिता भट्टाचार्य, प्रियशीला बेसरा, प्रवीर पीटर, सिराज दत्ता, टॉम कावला शामिल थे।

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